आदमी का लालच अपराध का प्रभावी कारण है

दोस्तों, अपराध एक ऐसी सामाजिक विकृति है, जो दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसा नहीं है कि पहले अपराध नहीं होते थे, लेकिन आजकल यह समस्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी हैं। छोटी मोटी गलतियां करने वाला व्यक्ति, आज बड़े से बड़े अपराध करने से भी नहीं कतराता है।

अपराध करना व्यक्ति का स्वभाव हो सकता है, उसकी आदत भी हो सकती है या फिर उसकी मजबूरी भी हो सकती है। लेकिन फिर भी, किसी भी परिस्थिति में अपराध तो, अपराध ही होता है।

अपराध को विभिन्न श्रेणियों में रखा जा सकता है और अपराधी की प्रकृति और प्रवृत्ति को भी। अपराध, समाज में फैली एक सामाजिक बुराई है, जिसका दुष्प्रभाव समाज के हर वर्ग पर पड़ता है। यह सदियों से चला आ रहा एक बेहद गंभीर विषय है, इसलिए विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न परिस्थितियों में अपराध तथा अपराधी का गहन अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है, और इसके लिए एक शास्त्र भी विकसित किया गया है, जिसका नाम है, क्रिमिनोलॉजी।

अपराध करने और अपराधी बनने के अनेक कारण होते हैं जो व्यक्ति की मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक स्थिति पर निर्भर करते हैं। इन सभी क्षेत्रों में व्यक्ति के उपर नियंत्रण, संतुलन और व्यवस्थापन बहुत जरूरी होता है। परिवार का या आसपास का माहौल, गरीबी, बेरोजगारी, दुःख, निराशा, मानसिक तनाव या मानसिक बीमारी, असफलता, ईर्ष्या, जलन, अन्याय और लालच जैसे कई कारण, व्यक्ति को छोटे बड़े अपराध करने पर मजबूर कर देते हैं। हालांकि अपने जीवन में यह सब कोई नहीं चाहता है, लेकिन इनमें से अधिकांश कारणों के लिए, व्यक्ति खुद ही  जिम्मेदार होता है।  यहां पर सबसे ज्यादा जरुरी है अपने आप पर नियंत्रण रखना। अपनी भावनाओं को काबू में रखना और समझदारी से काम लेना, वरना इसमें कोई संदेह नहीं है कि हो सकता है कि एक छोटी सी गलती भी बढ़ते बढ़ते गुनाह में बदल जाए।

आज हम चर्चा करेंगे, अपराध करने के लिए उकसाने वाले और अपराध को बढ़ावा देने वाले एक मुख्य कारण, लालच की। जी हां दोस्तों, लालच बुरी बला है, यह तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं और वाकई लालच एक बुरी नहीं बल्कि बहुत ज्यादा बुरी बला है, जो निःसंदेह व्यक्ति को अपराधी की श्रेणी में लाकर खड़ा कर सकती हैं।

दोस्तों, लालच, व्यक्ति के सभी दुखों और परेशानियों का एक मूल कारण है, और काफी हद तक अपराध का भी। वैसे तो हर इंसान कम या ज्यादा मात्रा में लालची होता है, क्योंकि उसे वो तो चाहिए ही होता है जो उसके लिए बेहद जरूरी है और साथ ही वह भी चाहिए ही होता है, जिसके बिना भी वो आराम से गुजारा कर सकता है। इसे ही तो लालच कहते हैं। इस प्रकार लालच एक ऐसी मानसिकता है, जिसमें व्यक्ति के पास जो है, वो इससे संतुष्ट नहीं होता है और जो नहीं है या दुसरों के पास हैं, उसे पाने की तीव्र इच्छा उसके मन में होती है। लेकिन लालच जब तक मर्यादित रहे, तभी तक ठीक है, नहीं तो अर्थ का अनर्थ होने में देर नहीं लगती है।

लालच किसे नहीं होता है, हम सभी लालची हैं। हम में से किसी को पैसे का, किसी को यश का, किसी को पद प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि का, किसी को मान सम्मान का, किसी को सत्ता का, किसी को सुंदरता का, किसी को अधिकार का तो किसी को किसी वस्तु का लालच होता है। यह लालच तब तक बुरा नहीं है, जब तक कि यह व्यक्ति के खुद के लिए और दूसरों के लिए हानिकारक ना हो। जब यही लालच अपनी सीमाएं तोड़ देता है, तो व्यक्ति को जरूर इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं और उसके साथ साथ कई दूसरे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं।

लालच के बीज, व्यक्ति के दिमाग में, उसके बचपन से ही बोए हुए रहते हैं और अगर उन्हें खाद मिलती रहे तो यह फलने फूलने लगता है। और दुर्भाग्य से जाने अनजाने में ये बीज, अधिकांशतः माता पिता ही अपने बच्चे में बो देते हैं।

जैसे एक साधारण सा उदाहरण देखते हैं कि, अपने बच्चे की योग्यता, क्षमता, ज्ञान और उसकी रुचि को जाने बिना ही पेरेंट्स अपने बच्चे के कक्षा में या किसी कॉम्पिटिशन में प्रथम स्थान लाने की इच्छा करते हैं और इसके लिए वो हर संभव प्रयास करते हैं और साथ ही बच्चे को भी लालच देते हैं कि प्रथम स्थान लाने पर उसे उसकी मनपसंद की चीज मिलेगी। बच्चे को वो चीज चाहिए है, तो वो भी अपनी तरफ से एडी चोटी का जोर लगाएगा। लेकिन हर बच्चा पहले स्थान पर तो नहीं आ सकता है ना। अगर मान लो बच्चा पहले नंबर पर नहीं आ पाया, तो इससे बच्चे का तो मनोबल गिरता ही है और उसके पेरेंट्स को भी निराशा ही होती है। और फिर शुरू होता है, दूसरों से तुलना और इर्ष्या का दौर। यह साल दर साल बढ़ता ही जाता है और अगर माता पिता और बच्चे की समझ अच्छी हैं, तो उनकी मानसिक स्थिति पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन अपने पेरेंट्स की महत्वाकांक्षाओं के चलते, बच्चा यदि मानसिक तनाव ले लेगा तो यह उसके सर्वांगीण स्वास्थ्य और विकास के लिए बाधक हो जाएगा। यह भी हो सकता है कि, बचपन में हीन भावना से ग्रस्त वो बच्चा, बड़ा होकर अपनी कुंठा के चलते किसी अपराध को अंजाम भी दे बैठे।

दूसरी स्थिति में यदि बच्चा प्रथम आ जाता है और उसे उसकी मनपसंद चीज भी मिल जाती है, तो क्या होगा? ये भी एक अच्छी स्थिति नहीं होगी दोस्तों। क्योंकि इससे उस बच्चे के अपरिपक्व दिमाग में ये बात अच्छी तरह घर कर जाएगी कि, उसके माता पिता या किसी अन्य व्यक्ति की बात उसे तभी माननी चाहिए, जब बदले में उसे उनसे कुछ मिलेगा। और यही आदत अगर, उसके बड़े होने तक भी बनी रही, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि वही बच्चा बड़ा होकर, अपने पद का दुरुपयोग करने वाला एक भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर बनकर, एक सामाजिक अपराध का भागी बनेगा।

ये दोनों ही स्थितियां लालच से उत्पन्न हुई है और इससे मिली खुशी और सुख केवल टेंपररी होगा। भविष्य में इस लालच का अंजाम, कभी भी अच्छा नहीं होगा।

इसलिए लालच को समय रहते अपने अंदर से बाहर निकाल फेंकिए।

आज व्यक्ति की बढ़ती लालची वृत्ति के कारण ही अपराधी वृत्ति के लोग अपराध करने के नए नए तरीके इजाद कर रहे हैं। सायबर क्राईम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। ऐसे शातिर अपराधी, ऐसे ही लालची लोगों की तलाश में रहते हैं, जिनकी इच्छा कम से कम मेहनत में या फिर फ्री में ही सब कुछ पाने की होती है। आज व्यक्ति की इच्छाएं और उसकी जरूरतें बेवजह बढ़ती ही जा रही है, और इसी कारण से उसका लालच भी बढ़ता ही जा रहा है। कम मेहनत में ज्यादा पाने का लालच, फ्री गिफ्ट्स का लालच, पैसे डबल करने का लालच, एक पर एक फ्री मिलने का लालच ये सब और इनके जैसे कई और लालच देकर व्यक्ति को फंसाना बहुत आसान हो गया है और व्यक्ति इसमें फंसते भी है। और अधिकांश लोग नुकसान उठाते हुए एक अपराध का शिकार होकर रह जाते हैं। यहां गलती, अपराधी से कहीं ज्यादा व्यक्ति की अपनी ही होती है, क्योंकि समय समम पर टीवी, न्युज पेपर, सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों के द्वारा इस विषय पर जागरूकता अभियान चलाया जाता है, और तो और जो लोग इस तरह के अपराध का शिकार हो चुके हैं, उनमें से भी कई लोग अपने अनुभव शेयर करते रहते हैं। और फिर भी लोग समझते नहीं हैं और अपनी लालची वृत्ति के चलते अपना तो सब कुछ गंवा ही बैठते हैं साथ ही एक अपराध और अपराधी को बढ़ावा देने का सामाजिक अपराध भी करते हैं।

दोस्तों, लालच के कारण मनुष्य की बुद्धि कैसे भ्रष्ट हो जाती है, इसके लिए हमें बचपन से ही कहानियों और कविताओं के जरिए सीखाया गया है। हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों में भी लालच से दूर रहने की नसीहत दी गई है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवद्गीता में समझाया है कि, काम, क्रोध और लालच आत्मनाश के तीन द्वार हैं।

दोस्तों, अंत में इन कुछ पंक्तियों पर गौर जरुर करें, लालच को अपने मन में बढ़ने ना दें। लालच बढ़ने पर व्यक्ति की वृत्ति और विचार नकारात्मक हो जाते हैं, उसकी वैचारिक क्षमता कम हो जाती है, कार्यक्षमता घट जाती है और उसके अंदर छल कपट की भावना बलवती हो जाती है जो उन्हें अपराध करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए जो आपके पास है, उसमें समाधान रखते हुए, गैरजरूरी और आवश्यकता से अधिक चीजों का लालच छोड़ दिजिए और अपने आप को एक गलती या अपराध करने से बचा लिजिए।

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