दूसरों पर भरोसा करने से पहले खुद पर भरोसा करो

“हारता तो वो है,

जो खुद से ही हारा है,

मत ढूंढ सहारा दूसरों में,

जब तू खुद ही.. अपना सहारा हैं !”

दोस्तों, किसी भी इंसान का सबसे अच्छा दोस्त कौन होता है? अगर ये प्रश्न पूछा जाए तो इसके कई जवाब हमें मिल सकते हैं, लेकिन सबसे सही जवाब तो यही हैं, कि किसी भी इंसान का सबसे अच्छा दोस्त, सही मायने में कोई और नहीं, बल्कि वह खुद ही होता है। हम जितना अपने आप को समझते हैं और अपने आप के बारे में जितना हम जानते हैं ,उतना और कोई नहीं जानता और समझता है… ना ही हमारे दोस्त, ना हमारे रिश्तेदार और यहां तक कि हमारे माता पिता भी हमारे बारे में सब कुछ नहीं जानते हैं।

इतना होने पर भी, कई बार हम अपने आप को ही नजरअंदाज कर देते हैं और खुद को प्राथमिकता देने के बजाय, दूसरों पर ज्यादा भरोसा करने लगते हैं। यही बात विश्वास यानी कि भरोसे पर भी लागू होती है। हम कई बार अपनी क्षमताओं को पहचान ही नहीं पाते हैं और खुद पर भरोसा करने के बजाय दूसरों पर ही ज्यादा भरोसा करने लगते हैं। जबकि ये बिल्कुल ग़लत बात है।

खुद पर विश्वास करना, यानी कि आत्मविश्वास । आत्मविश्वास की कमी के कारण ही हम हर बात के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं, चाहे वो भरोसा ही क्यों ना हो।

दोस्तों, किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए ये चार बातें जरुरी है, ज़िद, प्रयास, मेहनत और आत्मविश्वास। ज़िद, प्रयास और मेहनत के साथ साथ , जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास भी होता है, वह व्यक्ति किसी भी बड़ी से बड़ी बाधा और बड़ी से बड़ी चुनौती को पार करके, बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल कर लेता है।

कई बार ऐसा होता है, जब हम किसी काम को शुरू करने की योजना बनाते हैं, तो कई लोग हमें मांगी या बिना मांगी सलाह देने लगते हैं। इनमें से “कुछ” लोग, आपको प्रोत्साहित करेंगे और आपको सही सलाह भी देंगे । लेकिन “चंद” लोग ऐसे भी होंगे, जो आपकी योजना को हास्यास्पद बताकर, या आपको नकारात्मक सलाह देकर आपका मोराल डाऊन करने की कोशिश करेंगे और सायकोलॉजी के अनुसार, आप उन “कुछ” लोगों की बजाय उन “चंद” लोगों की बात पर ही ज्यादा ध्यान देंगे और हतोत्साहित हो जाएंगे।

आपने यह अक्सर सुना होगा कि ” सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग” । जी हां, जब भी हम अपने लिए किसी लक्ष्य का निर्धारण करते हैं, तो सबसे पहले हमारे मन में यही आता है कि, मैं असफल हुआ तो?  अगर मैं सफल नहीं हुआ, तो लोग क्या कहेंगे? मैं ये काम करुंगा, तो लोग मुझ पर हंसेंगे तो नहीं? ये सवाल उठना लाजिमी भी है लेकिन अगर हमारे मन में, खुद के लिए विश्वास हो, तो ये सभी सवाल बेमानी हो जाते हैं। इसलिए दूसरों की बातें सुनकर हताश होने के बजाय खुद से बातें करना ज्यादा बेहतर होता है।  अपनी योजनाओं को तब तक केवल अपने तक ही सीमित रखें, जब तक आप खुद को पूरी तरह तैयार ना कर ले। दूसरों को अपनी तैयारी नहीं बल्कि अपना रिजल्ट दिखाएं।

हालांकि किसी पर विश्वास करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन अंधाधुंध विश्वास करना जरुर गलत है। आप अगर कोई लक्ष्य पाना चाहते हैं, तो बेशक आपको दूसरों से राय लेने की, उनके अनुभवों से सीखने की और उनके मार्गदर्शन की जरूरत पड़ सकती है, और आपको ऐसा करना भी चाहिए।  लेकिन ये याद रखना भी जरुरी है, कि हर व्यक्ति की परिस्थिति , कार्यशैली और क्षमता में फर्क होता है, इसलिए आपको किस हद तक उनका अनुसरण करना है, ये सोचना भी जरुरी होता है। क्योंकि, चीजों को देखने का हर इंसान का नजरिया अलग होता है और उसकी राय और विचार भी अलग हो सकते है। इसलिए अपने आप को कंफ्युज करने के बजाय अपनी समझ से ही काम लें। इसे ही कहते हैं, खुद पर भरोसा करना।

दोस्तों, आज के इस कॉन्पिटिशन के दौर में, किसी भी तरह का रिस्क लेने के पहले या किसी भी काम को शुरू करने से पहले या फिर दूसरों से राय मशविरा करने के पहले, अपने आप से ये सवाल पुछने चाहिए कि, आप जो काम करने जा रहे हैं, क्या वाकई उसे आप करना चाहते हैं? क्या आपका उस काम में वाकई इंटरेस्ट है?  क्या आपने इसके बारे में पूरी रिसर्च की है? क्या आपके पास इस काम को करने की क्षमता, योग्यता और मेहनत करने का हौसला है?  और क्या आप इसके उतार चढ़ाव से वाकिफ है?

बस इन सवालों पर गौर कर लिजिए, अपने आप से उनके जवाब इमानदारी से पूछिए और जिन सवालों का जवाब ना हो, उन्हें हां में बदलने का प्रयास किजिए। बस! फिर आपको किसी और से कुछ पुछने की जरूरत ही नहीं होगी। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और फिर देखिए, आपके अपने ही इसी आत्मविश्वास के बल पर, आप अपने काम में सफलता की उंचाई पर पहुंच जायेंगे।

दोस्तों, किसी भी व्यक्ति के लिए चाहे वो एक छोटा सा बच्चा हो, जवान हो या फिर बुजुर्ग हो, आत्मविश्वास बेहद जरूरी होता है। इसका मतलब यह है कि, जीवन के हर मोड़ पर और हर क्षेत्र में, आत्मविश्वास ही आपका सबसे बड़ा साथी होता है, जो आपका हाथ पकड़कर, आपको सहारा देता है, आपको गिरकर उठना और उठकर आगे बढ़ना सीखाता है।

आत्मविश्वास की कमी से व्यक्ति खुद भी निष्क्रिय हो जाता है और जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण भी नकारात्मक ही हो जाता है। उसे लोगों से मिलने जुलने और बातचीत करने में हिचकिचाहट होती है। उसकी सफलता के चांसेज कम हो जाते हैं और वो डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है।व्यक्ति की यह स्थिति, दूसरों के साथ साथ उसके अपने लिए भी बहुत ख़तरनाक हो सकती है।

इसलिए अपने आत्मविश्वास को बनाए और जगाए रखिए। दूसरों से कम से कम उम्मीद रखिए। अपने निर्णय खुद लेने की कोशिश किजिए। यकीन मानिए यह बेहद जरूरी है, वरना आप एक छोटे से निर्णय को लेने के लिए भी, किसी दूसरे पर निर्भर होकर रह जाएंगे।

अपने अंदर आत्मविश्वास की भावना जगाना कोई रॉकेट साइंस नही है दोस्तों। आपको ज्यादा कुछ नहीं, बस इन कुछ बातों को ध्यान में रखना होगा, जैसे सबसे पहले तो खुद से प्यार करना होगा और खुद का सम्मान करना होगा। दूसरों के विचारों को जानने से पहले, अपने खुद के विचारों को जानकर उन्हें प्राथमिकता देनी होगी। अपने मन की बात समझनी होगी। अपने अंदर छोटे बड़े बदलाव लाने होंगे, जो आपके व्यक्तित्व का विकास करेंगे। जैसे आपको आपका रहन सहन और आपकी आदतें सुधारनी होगी, और स्पष्ट बोलने की आदत डालनी होगी। साथ ही आपको अपडेट रहना होगा, जमाने के हर बदलाव पर नजर रखनी होगी और अपने नॉलेज के लेवल को बढ़ाना पड़ेगा, ताकि जब आप किसी के सामने जाएं तो पूरे आत्मविश्वास के साथ जाएं।

दोस्तों, आत्मविश्वास को कैसे बढ़ाएं या खुद में विश्वास कैसे जगाए, यह एक गंभीर विषय है और इस विषय पर समय समय पर, कई अच्छे लेखकों द्वारा काफी अच्छी किताबें भी लिखी गई है। उनमें से बहुत सी किताबें, प्रसिद्ध सायकोलॉजिस्ट्स ने भी लिखी है, जो हमारा सही मार्गदर्शन कर सकती हैं।

यह भी याद रखिए दोस्तों, कि जिस तरह आत्मविश्वास की कमी किसी भी व्यक्ति की प्रगति और विकास के लिए बाधक है, उसी तरह अति आत्मविश्वास भी उसके लिए हानिकारक ही है। अब इन दोनों में जो एक महिन सीमारेखा है, उसे आपको ही निर्धारित करना है।

दोस्तों, आप अपने आप के लिए बहुत स्पेशल है, आपको यह समझना होगा। आपको आपके अलावा और कोई समझ नहीं सकता है, इसलिए पहले अपने आप को महत्व दें। अपने आप को पहले और दूसरों को दुसरे स्थान पर ही रहने दें और दूसरों पर भरोसा रखने के पहले, खुद पर भरोसा रखें।

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