आत्मनिर्भर, आत्म और निर्भर इन दो शब्दों से मिलकर बना एक सार्थक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, किसी कार्य के लिए, दूसरों का सहारा ना लेकर,स्वयं ही उस कार्य को करना। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि, किसी पर भी निर्भर न रहकर अपना काम स्वयं करने को आत्मनिर्भर होना कहते हैं और इस गुण को हम आत्मनिर्भरता कहते हैं।
आज के सामाजिक परिवेश में, जहां सभी अत्यंत व्यस्त रहते हैं, किसी से भी जरुरत से ज्यादा या अनावश्यक सहायता या सहारे की उम्मीद रखना बेमानी सा है। अतः हम सभी को आत्मनिर्भर होने की बहुत आवश्यकता है। छोटी-छोटी बातों पर हमेशा ही दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय, हमें स्वयं ही चीजों को सीखने और करने की कोशिश करनी चाहिए, इससे हम नई नई बातें सीखते भी है और दूसरों पर हमारी निर्भरता भी कम हो जाती है।
परंतु वास्तविकता यह है कि, हमारी सामाजिक व्यवस्था कुछ इस प्रकार की बनी हुई है कि, हम सभी परोक्ष या अपरोक्ष रुप में, एक दूसरे पर निर्भर करते ही हैं। और इस सच से हम बच भी नहीं सकते हैं।परंतु यह निर्भरता इतनी अधिक भी नहीं होनी चाहिए कि हम दयनीय और लाचार प्रतित होने लगें।दूसरों से अपेक्षाएं रखने की भी हमारी एक सीमा तय होनी चाहिए ,और उसके दायरे में ही रहकर हमें उनसे सहायता की अपेक्षा करनी चाहिए।
आत्मनिर्भर होने का नियम, हमें हमारे जीवन के हर क्षेत्र में लागू करना चाहिए। अक्सर हम मानसिक, समाजिक और आर्थिक रुप से किसी ना किसी पर निर्भर करते हैं, परंतु जैसा कि पहले ही बताया गया है कि,यह निर्भरता एक सीमा तक ही सीमित हो तो ही अच्छा है।यदि हम अपनी हर छोटी-बड़ी समस्याओं को स्वयं ही कोशिश करके हल करने के बजाय,अक्सर ही किसी ना किसी के पास दौड़े चले जाते हैं तो, इससे हम हमारा ही नुकसान कर बैठते हैं, क्योंकि जो समस्याएं हम थोड़ी सूझ बूझ दिखाकर,आसानी से हल कर सकते हैं, उनके लिए हर बार किसी और पर निर्भर करना, हमारी मूर्खता ही दर्शाता है। और धीरे-धीरे लोग हमसे दूर होने लगते हैं।
अतः हमें किसी भी कार्य के लिए स्वयं ही अंत तक प्रयास करना चाहिए,और जब कार्य असंभव लगने लगें, तभी किसी और का सहारा लेना चाहिए।
याद रखिए, आज हर किसी की अपनी तकलीफें है।और हम यदि अपनी समस्याओं का पिटारा लेकर बार-बार किसी के पास पहुंच जाते हैं तो शायद रिश्ते का मान रखकर वो हमें बर्दाश्त भी कर ले, परंतु किसी भी रिश्ते की बुनियाद मजबूरी नहीं होती है।और तो और, हमारा कोई अत्यंत करीबी व्यक्ती भी एक सीमा तक ही हमें मानसिक सहारा दे सकता है,इस बात को हमें समझना ही होगा।
आज के इस महंगाई भरे दौर में, जहां महंगाई ने हर किसी की कमर तोड़ रखी है, जहां तक संभव हो,हम आर्थिक दृष्टि से भी किसी से सहायता की उम्मीद ना करें तो ही अच्छा है, क्योंकि आज सभी एक ही दौर से गुजर रहे हैं। कभी-कभी कोई आपकी सहायता कर भी देगा, परंतु अधिक समय तक सहायता करना उनके लिए भी संभव नहीं हो सकता है।
आज कोरोना महामारी की वजह से,जिस प्रकार की अनपेक्षित और विचित्र परिस्थति हमारे देश में उत्पन्न हुई है, उससे कई लोगों को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा है। परंतु इसी प्रतिकूल स्थिति ने हमें जीना भी सिखाया है। नौकरियां जानें के बाद कई लोगों ने पारिवारिक स्थितियों को संभालने के लिए, अपने हुनर का सहारा लिया,और आत्मनिर्भरता की ओर क़दम बढ़ाया है।
महिलाएं भी आज किसी पर निर्भर रहना पसंद नहीं करती है और अपनी शिक्षा या हुनर के दम पर, हर क्षेत्र में सफल होकर, आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है, जो कि परिवार और देश के भविष्य के लिए बहुत अच्छी बात है।
हमें हमारी, हमारे परिवार की और हमारे देश की उन्नति और उज्जवल भविष्य के लिए, मेहनत और स्वयं पर विश्वास रखते हुए आत्मनिर्भरता का गुण अपनना ही होगा।
परंतु यह सब बातें, बच्चें,बुढ़े, लाचार और पशु पक्षियों पर लागू नहीं होती है। उन्हें तो सहारे की जरूरत हमेशा रहेगी ही। हमें तो स्वयं को तराशकर इस काबिल बनाना है कि हमें बेवजह सहारे की जरूरत ना पड़े,बल्कि हम ही जीवन में किसी का सहारा बन सके।