खुद बदलो तो सब बदलेगा

khud badalo to sab badalega

“हर बदलाव की शुरुआत कर, तू खुद को बदलकर,

जमाने को बदलना चाहता है, तो खुद से पहल कर”

कहते हैं, बदलाव की शुरुआत खुद से करनी चाहिए। यदि आप दुनिया को बदलना चाहते हैं, तो पहले आपको स्वयं को बदलना होगा।और बदलाव का यही सही तरीका है।

कोई भी इंसान ऐसा नहीं होता है, जिसमें कोई भी बुराई या कमी ना हो, परंतु अपनी कमजोरियों को जानना, उन्हें स्वीकार करना  और उन्हें बदलना भी हिम्मत का काम है।

आमतौर पर हम सिर्फ़ लोगों में कमियां ढूंढते रहते हैं या फिर उनकी कमजोरियों पर हमारी नजर होती है और हम सतत उनसे बदलाव की अपेक्षा करते हैं।परंतु हम उनकी अच्छाइयों और खासियतों को नजरंदाज करके बेवजह उन्हें सीख देते रहते हैं। यहां पर हमें अपना नजरिया बदलने की आवश्यकता है। हमें यहां ध्यान देना होगा कि कहीं हममे भी तो ऐसी कोई बात नहीं है, जिसे हमें बदलना चाहिए। यदि है तो उसे स्वीकार करके पहले अपने आप में बदलाव लाना होगा तभी दुसरो को सीख देनी होगी।

हम बदलना आखिर किसे चाहते हैं , अपनी या दुसरो की आदतों को, अपने आसपास के माहौल को, खुद को या लोगों को, सिस्टम को या फिर रीती रिवाजों  तथा नियम व कायदे कानून को , यदि बदलाव की यही परिभाषा है तो फिर निश्चित ही शुरुआत आपको अपने से ही करनी होगी। हम अपनी आदतों का, अपने नजरिए का या अपने व्यवहार का अवलोकन करके आवश्यकतानुसार उनमें बदलाव लाकर, फिर ही लोगों को बदलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

यदि हम किसी काम को दुसरो को करने से मना करते हैं या रोकते हैं और स्वयं वही काम करते हैं तो हमारी अच्छी से अच्छी बात का भी कोई महत्व नहीं रहता हैं और लोगों का हमारे प्रति नजरिया भी बदल जाता है। कभी-कभी तो हम लोगों की दृष्टि में हंसी के पात्र भी बन जाते हैं, और वे सामने से तो कुछ नहीं कहते पर हमारी पीठ के पीछे हमारी खिल्ली जरुर उड़ाते हैं।

ये तो रही बड़ों की बात, परंतु यही बात बच्चों के साथ भी लागू होती है। कहते हैं बच्चे सबसे बड़े नकलची होते हैं,और वे हमारी हर बात का अवलोकन और अनुसरण करते रहते हैं। अतः हमें उन्हें यदि बदलाव की शिक्षा देनी होगी तो पहले खुद का अवलोकन करना होगा। याद रखिए कि बच्चे ही आपके सबसे बड़े आलोचक भी होते हैं, उनके मन में सच्चाई होती है,सो वे बिना डरे या हिचके आपको आपकी गलतियां दिखा देते हैं। यह कहना शायद अतिशयोक्ति लग सकती है, पर किसी भी छोटे बच्चे के व्यवहार और संस्कार से आप उसके नजदिकी लोगों के व्यवहार और संस्कार का पता लगा सकते हैं। क्योंकि बच्चा सबसे पहले अपने घर से सब सीखने की शुरुआत करता है। हम अपने बच्चों को अच्छी आदतें सीखने और आत्मसात करने की प्रेरणा कैसे दे सकते हैं जब हम स्वयं ही बुरी आदतों के गुलाम हो। इसलिए यहां भी हमें बदलना होगा, अपनी गलती आदतों और विचारों को।

हम जब बाहर घूमने जाते हैं, तो जगह-जगह फेंके हुए कचरे को देखकर हमारी पहली प्रतिक्रिया यही होती हैं कि जाने कौन जाहिल लोग होंगे जो हर जगह इतना कचरा फैलाते हैं। पर क्या हम वाकई कभी ऐसा नहीं करते। यदि हम सभी ये काम नहीं करते हैं तो फिर ये कचरा आता कहा से हैं?हम लोगों की सामान्यतः ये आदत होती है,कि हम बाहर जाकर कुछ भी खाते पीते हैं तो कचरा वहीं छोड़ देते हैं। यही हाल ट्रेन्स और गार्डन का है, पानी की खाली बोतलें, खाने के खाली  पैकेट और ना जाने कितनी ही गंदगी हम फैलाते हैं। यहां तक की हमारे महान ऐतिहासिक स्थलों को भी नहीं छोड़ा गया है।और इसके लिए हमेशा दूसरों को दोष देते हैं। यदि हम सभी ये आदत खुद ही डाल ले कि जिस प्रकार हम अपने घर को स्वच्छ रखते हैं,उसी प्रकार यदि हमारे आसपास का माहौल भी स्वच्छ रखें तो ये बदलाव कितना सुखद हो सकता है।

हम अकसर ही भ्रष्टाचार की शिकायत करतें रहते हैं जो हमारे आसपास एक बीमारी की तरह फ़ैल गया है। अधिकतर देखा गया है कि सरकारी कार्यालयों में या फिर किसी नौकरी को पाने के लिए या कोई काम करवाने के लिए, स्कुल या कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए ,एक छोटे से बाबू से लेकर बड़े अधिकारी तक सभी को रिश्वत देनी होती हैं तभी हमारा काम होता है।और हम लोग अपना काम हो जाएं इसके लिए ऐसा करते ही हैं। तो ये सिलसिला तो चलता ही रहेगा ना, फिर हमें किसी दुसरे को या सिस्टम को दोष देने का क्या हक हैं। क्या हम यहां ना बोलकर अपनी तरफ से बदलाव की शुरुआत नहीं कर सकते हैं?

आज का युवा,जो बात बात पर देश, दुनिया, सरकार और सिस्टम को बदलने की बात करता है, समाज में अपनी जड़ें जमाएं बैठे  रिती रिवाजों के विषय में कम ही बोलता हुआ दिखता है।  जिस समाज में एक ओर जहां लड़कियों को माता का रुप मानकर पुजा जाता है, वहीं पर दहेज़ के लालच में उसे मार भी दिया जाता है। यहां पर बदलाव की जरूरत है,और ये बदलाव आज का युवा ही कर सकता हैं। दहेज प्रथा जैसी कूरीतियों को खत्म करने की पहल करके। और ये बदलाव होगा उसके अपने घर से।

हर धर्म में या हर परिवार में कुछ प्रथाए, परंपराएं,अंधविश्वास या कुरितीया ऐसी होती हैं,जिनका समय के साथ बदलना या बंद होना बहुत जरुरी है। परंतु हम सभी सब-कुछ जानते और समझते हुए भी आंखें मूंद लेते हैं और किसी और के पहल करने की राह देखते हैं। क्योंकि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां इन सब बातों पर बोलना गलत माना जाता है। अतःहमें यदि यहां कुछ बदलने की इच्छा है तो हमें हमारे घर से और समाज से ही शुरुआत करनी होगी।

कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है कि जो पुरानी विचारधारा के लोग हैं, वे जल्दी से किसी भी परिवर्तन के लिए तैयार नहीं होते हैं,और नए दौर की नई पीढ़ी की विचारधारा को समझने की कोशिश नहीं करते हैं।यहां बदलाव जरूरी है, विचारों और धारणाओं में। सिर्फ़ नए युग को, उसके नए नियमों को दोष देना ठीक नहीं है, बल्कि हमें अपनी पुरानी मान्यताओं को छोड़कर उसकी अच्छाइयों को भी अपनाना चाहिए।

ये तो कुछ बातें हैं जिन्हें हर कोई बदलना चाहता है, पर बदलाव कहां से हो, किससे हो या कैसे हो ये नहीं जानता। हम समाज में या लोगों में बदलाव चाहते हैं तो जाहिर है पहल या शुरुआत खुद से ही करनी होंगी।आप खुद बदलोगे तभी दुसरे आपसे प्रेरित होकर बदलना चाहेंगे। अतः समझदार बन क्योंकि खुद बदलो तो ही सब बदलेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here