क्रिया की परिभाषा तथा क्रिया के भेद

Kriya Ki Paribhasha
Kriya Ki Paribhasha

क्रिया की परिभाषा

क्रिया का शाब्दिक अर्थ है, किसी काम को करना। इस प्रकार क्रिया की परिभाषा हैं,” किसी भी वाक्य में प्रयुक्त वे शब्द, जो किसी काम के करने या होने की ओर संकेत करते हैं, उन्हें क्रिया शब्द कहते हैं।”

जैसे, खाना, पीना, खेलना, भागना, रोना, सोना, गाना इत्यादि।

जो व्यक्ति क्रिया करता है उसे कर्ता कहते हैं।

उदाहरण के लिए, इन कुछ वाक्यों को पढ़िए,

  1. रक्षा खेल रही है।
  2. मां खाना बना रही थी।
  3. बच्चे खेल रहे हैं।
  4. दादी चाय पीयेगी।
  5. राहुल नहा रहा है।

इन सभी वाक्यों से किसी ना किसी काम के होने का संकेत मिलता है। जैसे, पहले वाक्य में, रक्षा, खेलने का काम कर रही है, इसलिए इस वाक्य में, “खेल रही है” एक क्रिया पद है और रक्षा एक कर्ता है। इसी तरह दुसरे वाक्य में, मां के द्वारा खाना बनाने का काम किया जा रहा है, इसलिए यहां पर मां एक कर्ता है और “खाना बना रही है” यह क्रिया पद है। तीसरे वाक्य में, शिक्षक पढ़ाने का काम कर रहे है, इसलिए यहां पर शिक्षक कर्ता है और “पढ़ा रहे हैं” एक क्रिया पद है। इसी तरह अगले वाक्य में, दादी कर्ता है और “चाय पी रही है” क्रिया पद है। आखरी वाक्य में, राहुल कर्ता और “नहा रहा है” क्रिया पद है।

संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण की तरह ही, क्रिया भी एक विकारी शब्द है, यानी कि क्रिया शब्द के रुप, किसी भी वाक्य में प्रयोग किए गए, लिंग, काल और वचन के अनुसार बदलते हैं। जैसे, उपरोक्त वाक्यों में ही देखिए, पहले वाक्य में “खेल रही है“, इस क्रिया पद से किसी स्त्री लिंग के द्वारा कार्य करने का बोध हो रहा है, तो वही पांचवें वाक्य में “नहा रहा है” इस क्रिया पद से पुल्लिंग का बोध हो रहा है। इसी तरह समय के आधार पर देखा जाए तो पहले वाक्य में खेल रही है, से वर्तमान काल का बोध होता है, दूसरे वाक्य से भूतकाल का और चौथे वाक्य से भविष्य काल का बोध होता है। इसी तरह इन्हीं वाक्यों में प्रयुक्त “रही है” और “रहे हैं” इन क्रिया शब्दों से क्रमशः एक वचन और बहु वचन का पता चलता है।

क्रिया के मूल रुप को धातु कहते हैं और धातु में प्रत्यय जोड़ने पर, क्रिया शब्द बनते हैं। अधिकांश क्रिया शब्दों का निर्माण, धातु से ही होता हैं। तो वहीं पर कुछ क्रिया शब्दों का निर्माण, संज्ञा और विशेषण शब्दों से भी होता है।

उदाहरण के लिए,

ढूंढ+ना= ढूंढना

लिख+ना = लिखना

गा+ना = गाना

पा+ना = पाना

सुन+ना = सुनना

हंस+ना= हंसना

क्रिया के भेद या प्रकार

क्रिया के तीन भेद या प्रकार होते हैं,

  1. काल के आधार पर
  2. कर्म के आधार पर
  3. वाक्य में प्रयोग या संरचना के आधार पर

इसे हम विस्तार से उदाहरण सहित समझते हैं।

काल के आधार पर

क्रिया, से किसी काम के होने का पता तो चलता ही है, और साथ ही यह भी पता चलता है कि वह किस समय या काल में हुई हैं। अर्थात क्रिया, भूत काल में हुई हैं, वर्तमान काल में हो रही है या फिर भविष्य काल में होने वाली है। उदाहरण के लिए,

भूतकाल

  • मैंने क्रिकेट खेला। (भूतकाल)

वर्तमान काल

  • मैं क्रिकेट खेल रहा हूं। (वर्तमान काल)

भविष्य काल

  • मैं क्रिकेट खेलूंगा। (भविष्य काल)

कर्म के आधार पर क्रिया

यहां कर्म से तात्पर्य है कि, किसी भी वाक्य में, होने वाला काम। कभी कभी किसी वाक्य में, यह स्पष्ट होता है कि कर्म का स्वरूप क्या है तो किसी वाक्य में यह स्पष्ट नहीं होता है, कि कर्म कैसा है। परंतु इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है। इस प्रकार कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं,

  • सकर्मक क्रिया
  • अकर्मक क्रिया

कर्म के आधार पर क्रिया के इन दोनों प्रकारों को और अधिक अच्छे से समझते हैं।

सकर्मक क्रिया

जिन वाक्यों में, कर्ता और क्रिया के साथ कर्म का भी प्रयोग होता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। ऐसे वाक्यों में, क्रिया का प्रभाव, कर्ता पर नहीं पड़ता है, बल्कि सीधा सीधा कर्म पर पड़ता है।

दूसरे शब्दों में, जिन वाक्यों का अर्थ पूर्ण करने के लिए, क्रिया के साथ कर्म की भी आवश्यकता होती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। इस प्रकार, सकर्मक का अर्थ है, कर्म के सहित। इन वाक्यों में हमें क्रिया के पहले “क्या” “कहां” इत्यादि जैसे प्रश्न वाचक शब्द लगाने से उत्तर मिल जाता है। कुछ उदाहरण देखते हैं,

  • रिया गाना गाती है।
  • ममता खाना खाती है।
  • दादी पूजा कर रही है।
  • चीता तेज दौड़ा।
  • राहुल चाय पी रहा है।

इनमें से पहले वाक्य को देखें, इसमें लिखा है कि रिया गाना गाती है, यहां “गाना” इस क्रिया का सीधा संबंध “गाती है” से हैं। क्योंकि यदि प्रश्न इस प्रकार का है कि, रीया क्या गाती है? तो इसका उत्तर होगा गाना। यहां पर रिया के गाने का सीधा प्रभाव, “गाना”  यानी कि कर्म पर पड़ता है, इसलिए “गाती है”, सकर्मक क्रिया हैं, और “गाना” यह कर्मकारक है।

सकर्मक क्रिया के भी दो उपभेद होते हैं, एक कर्मक क्रिया और द्वि कर्मक क्रिया। जब किसी भी किसी वाक्य में क्रिया के साथ एक ही कर्म का प्रयोग होता है, उसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे, राम ने धनुष तोड़ा।

इसी तरह वाक्य में जब क्रिया के साथ दो कर्मों का प्रयोग हो, तो उसे द्वि कर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे, “शिवजी ने राम को धनुष दिया।” इस वाक्य में दो कर्मों का प्रभाव स्पष्ट हो रहा है। राम और धनुष।

अकर्मक क्रिया

जिस वाक्य में, कर्ता तथा क्रिया हो, लेकिन कर्म ना हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, अ का अर्थ होता है नहीं। इसलिए अकर्मक का अर्थ है, कर्म के रहित अर्थात कर्म के बिना। इसमें क्रिया का प्रभाव, कर्म पर ना पड़कर, कर्ता पर पड़ता है। इसे और अधिक अच्छे से समझते हैं, कि यदि हम किसी वाक्य को एक प्रश्न के रुप में देखते हैं कि वाक्य में कर्ता क्या कर रहा है, यदि हमें उत्तर नहीं मिलता है तो यहां वाक्य में प्रयुक्त क्रिया अकर्मक क्रिया होती है। उदाहरण के लिए, इन वाक्यों को देखिए,

  • रिया गाती है।
  • ममता खाती है।
  • राजु रोता है।
  • चीता दौड़ा।
  • राहुल चिल्लाता है।

इन सभी वाक्यों में, कर्ता और क्रिया दोनों तो है, लेकिन कर्म नहीं है। लेकिन यहां कर्म का अभाव नजर भी नहीं आता है, अर्थात यदि इन वाक्यों में कर्म की आवश्यकता नहीं होती है और इन वाक्यों में हमें प्रश्न का उत्तर भी नहीं मिलता है। जैसे पहले वाक्य को देखते हैं, यहां यदि हम प्रश्न पूछे कि रिया क्या गाती है, तो हमें कोई उत्तर नहीं मिल रहा है कि रिया क्या कर्म कर रही है। फिर भी वाक्य अपने आप में पूरा ही नजर आता है।

वाक्य में प्रयोग या संरचना के आधार पर

रचना के आधार पर क्रिया के पांच प्रकार होते हैं, जिन्हें हम संक्षिप्त में समझेंगे। ये प्रकार इस प्रकार है –

सामान्य क्रिया

जिन वाक्यों में केवल एक ही क्रिया का प्रयोग हो और वाक्य बिल्कुल सामान्य हो वहां सामान्य क्रिया होती है। उदाहरण के लिए,

लीना आई ।

मां बाजार गई।

इन वाक्यों में, क्रमशः आई और गई, ये एक क्रिया ही प्रयुक्त हो रही है, इसलिए ये सामान्य क्रिया हैं।

संयुक्त क्रिया

जिन वाक्यों में, दो से ज्यादा क्रियाएं, एक साथ प्रयुक्त हो रही है, वहां संयुक्त क्रिया होती है। उदाहरण के लिए,

लीना आ चुकी है।

मां बाजार जा चुकी है।

इन दोनों वाक्यों में, दो दो क्रियाएं उपयोग हो रही है,। पहले वाक्य में आ और चुकी है, तथा दूसरे वाक्य में जा और चुकी है। इसलिए इन वाक्यों में संयुक्त क्रिया हैं।

नामधातु क्रिया

जिन वाक्यों में, संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों से बने हुए, क्रिया पदों का उपयोग होता है, तो उन क्रिया पदों को नामधातु क्रिया कहते हैं।

उदाहरण के लिए, जैसे दुख जो एक विशेषण शब्द है, से दुखियाना, बात शब्द से बतियाना, हाथ इस संज्ञा शब्द से हथियाना इत्यादि।

पूर्वकालीक क्रिया

क्रिया के इस प्रकार में, वाक्य में दो क्रियाएं होती जिनमें से एक मुख्य क्रिया होती है जो वर्तमान में चल रही होती हैं और दूसरी क्रिया हो चुकी होती है, उसे पूर्वकालीक क्रिया कहते हैं। उदाहरण के लिए,

शिक्षक ने पढ़ाया और वे स्टाफ रुम में चले गए।

यहां दो क्रियाएं सम्पन्न हुई हैं, एक पढ़ाया जो पहले हो चुकी है और दूसरी उसके बाद हुई है या हो रही है। इसलिए यहां पर चले गए, यह मुख्य क्रिया हैं और पढ़ाया यह पूर्वकालीक क्रिया हैं।

प्रेरणार्थक क्रिया

क्रिया के इस प्रकार में, वाक्य में प्रयुक्त कर्ता स्वयं क्रिया ना करके, किसी अन्य को कार्य करने की प्रेरणा देता है। उदाहरण के लिए,

मां ने सुनिता को आंगन से कपड़े लाने के लिए कहा।

यहां पर मां कर्ता है, जो सुनिता को काम करने के लिए कह रही है।

तो ये थे, रचना के आधार पर क्रिया के प्रकार।