Nasikya Vyanjan|नासिक्य व्यंजन की परिभाषा और कितने होते हैं?

Nasikya Vyanjan
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Nasikya Vyanjan | नासिक्य व्यंजन

क्या आप जानते हैं,   नासिक्य व्यंजन (Nasikya Vyanjan) किसे कहते हैं और  नासिक्य व्यंजन कितने होते हैं? यदि आपको नासिक्य  के व्यंजन की जानकारी नहीं है तो इस लेख में अंत तक बने रहें, क्योंकि हम यहां नासिक्य  के व्यंजन के बारे में विस्तार पूर्वक बताने वाले हैं।

आपको बता दें कि  नासिक्य व्यंजन, व्यंजन का ही एक प्रकार है जिससे यह पता चलता है कि हिंदी वर्णमाला में वर्णों का उच्चारण किस तरह से किया जाता है।

तो चलिए फिर बिना देर किए इस लेख को शुरू करते हैं और जानते हैं  नासिक्य व्यंजन से संबंधित सभी महत्वपूर्ण बातें जैसे नासिक्य  के व्यंजन का उच्चारण स्थान क्या है और  नासिक्य व्यंजन कौन से होते हैं –

 नासिक्य व्यंजन किसे कहते हैं | Nasikya Vyanjan Kise Kehete Hai

 नासिक्य व्यंजन वर्ण विचार में एक ऐसा व्यंजन है, जिसमें आवाज नाक के रास्ते से बाहर निकलती है। यह विशेष ढंग से उच्चारण किया जाता है, जो अनुवादित करने वाले ध्वनि में एक विभिन्न अंतर बनाता है।

आवाज को नाक से निकालने के लिए जीभ को आगे की ओर धकेला जाता है जिससे नाक से हवा बाहर निकलती है और ध्वनि उत्पन्न होती है।

सरल शब्दों में  नासिक्य व्यंजन विधियों को कहते हैं जिनमें आवाज को नाक द्वारा बाहर निकालते समय उच्चारण होता है। यह व्यंजन विशेष रूप से नाक से ही उपचारित होते हैं इसमें जीव और मुख का कोई भी भाग शामिल नहीं होता है।

जैसे कि –

ण – इस व्यंजन को उपचारित करते समय आपकी जीभ अपने मुख से ऊंची नहीं जाती है,  लेकिन आपकी नाक के डेंटल भाग पर आवाज निकालती है।  इसका उदाहरण शब्द है ‘णगर’ इसमें ‘ण’ के बाद ‘न’ का वर्ण होता है, जो नाक से उपचारित होता है। इन्हें मुर्धना स्पर्शी  नासिक्य व्यंजन व्यंजन भी कहा जाता है।

ङ – इस व्यंजन को उच्चारित करते समय आपकी जीभ अपने मुख से ऊंची जाती है और नाक के पीछे वेलार भाग पर आवाज निकालती है। इसका उदाहरण शब्द है, ‘कंगन’। इसमें ‘क’ के बाद ‘ङ’ का वर्णन आता है, जो नाक से उच्चारित होता है। इन्हें उंगली स्पर्शी नासिक्य  के वेलार व्यंजन भी कहते हैं।

म – इस व्यंजन को उच्चारित करते समय आपकी जीभ भी अपने मुख से ऊंची नहीं जाती है और नाक के बिलाबियल भाग पर ही आवाज निकालती है। इसका उदाहरण शब्द है, ‘माता’ इसमे ‘म’ के बाद ‘म’ का वर्ण होता है, जो नाक से उच्चारित होता है। इन्हें उपरी होंसिली नासिक्य  बिलाबियल व्यंजन भी कहते हैं।

ञ – इस व्यंजन के उच्चारण के लिए आप आपकी जीभ अपने मुख से ऊंची नहीं जाति है और नाक के पलातल भाग पर आवाज निकालती है। इसका उदाहरण शब्द है ‘ज्ञान’ इसमें ‘ज्ञ’ के बाद ‘ज’ का वर्णन होता है,जो नाक से उच्चारित होता है।  इन्हें उंगली स्पर्शी नासिक्य  के पलातल व्यंजन भी कहते हैं।

न – इस व्यंजन को उच्चारित करते समय आपकी जीभ भी अपने मुख से ऊंची नहीं जाती है और नाक के डेंटल भाग पर ही आवाज निकालती है। इसका उदाहरण शब्द है ‘नकली’ है।  इसमें ‘न’  के बाद ‘न’ का वर्ण होता है,  जो नाक से उच्चारित होता है। इन्हें मुर्धन स्पर्शी नासिक्य  के डेंटल व्यंजन की कहते हैं।

 नासिक्य व्यंजन की परिभाषा क्या है | Nasikya Vyanjan Ki Paribhasha

हिंदी वर्णमाला के ऐसे वर्ण जिन का उच्चारण करते समय अधिकतर प्राणवायु नाक के माध्यम से बाहर निकलती है उन्हें  नासिक्य व्यंजन कहा जाता है।

आसान शब्दों में कहें तो ऐसे व्यंजन जिन का उच्चारण नाक के द्वारा की जाती है यानी उच्चारण के दौरान हवा नाक के माध्यम से बाहर आती है,  नासिक्य व्यंजन कहलाती है। नासिक्य  का मतलब होता है नाक के माध्यम से उच्चारित होने वाले वर्ण। 

इतना ही नहीं  नासिक्य व्यंजन को अनुनासिक्य  व्यंजन के नाम से भी जाना जाता है।

 नासिक्य व्यंजन की संख्या कितनी होती है

हिंदी व्याकरण के अनुसार हिंदी वर्णमाला में  नासिक्य व्यंजन की कुल संख्या पांच होती है। यह पांच  नासिक्य व्यंजन है – ण, ङ, म, ञ, न। ये  विशेष ढंग से उपचारित होते हैं, जिनमें आवाज को नाक के द्वारा बाहर निकालते हैं।

इन्हें  नासिक्य व्यंजन कहते हैं,  क्योंकि इनके उच्चारण के समय प्राणवायु का अधिकांश भाग नाक के द्वारा बाहर निकलता है।

 नासिक्य व्यंजन का उच्चारण स्थान क्या है

नासिक्य  की व्यंजन का उच्चारण स्थान नाक है और मेरा यह व्यंजन विशेष ढंग से उपचारित होते हैं जिनमें आवाज नाक के द्वारा बाहर निकलती है। इसमें जीव और मुख का कोई भी भाग शामिल नहीं होता है।

नासिक्य  के व्यंजनों को उपचारित करते समय आवाज नाक में से निकलती है जिससे वेरना किया नासिक्य  के व्यंजन कहलाते हैं। 

इनमें वर्ण का उच्चारण करते समय जीभ और मुख के विभिन्न भागों के जोड़ों का उपयोग नहीं किया जाता है जैसा कि अन्य कई व्यंजनों में होता है इन व्यंजनों का उच्चारण नाथद्वारा होता है जिसमें जीव और मुख का अधिकांश भाग बंद रहता है।

नाक के माध्यम से इन व्यंजनों को उच्चारित करने के कारण इन्हें नासिक्य  के वर्ण भी कहते हैं।

 नासिक्य व्यंजन के उदाहरण क्या है

यहां हम  नासिक्य व्यंजन के कुछ उदाहरण दे रहे हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है,  हिंदी व्याकरण में पांच नासिक्य  के व्यंजन होते हैं। यहां हम उन पांचो वर्णों के उदाहरण दे रहे हैं।  जैसे कि –

ङ – गंद, इंद्रियां,  आकांक्षा, संज्ञा, संवाद।

ण – गणित, रामायण,  वरुण, करुणा।

न – नदी, नल, नेपाल, नेत्र, नगर।

म – मछली, महल, मदद, मेघा, माध्यम।

ञ – रञ्जन, वाञ्छति, पश्चतपश्च।

निष्कर्ष

आज का यह लेख  नासिक्य व्यंजन (Nasikya Vyanjan) यहीं पर समाप्त होता है |आज के इस लेख में हमने जाना कि  नासिक्य व्यंजन किसे कहते हैं और  नासिक्य व्यंजन कितने होते हैं |

इसके अलावा हमने यहां बताया कि  नासिक्य व्यंजन कौन से होते हैं तथा  नासिक्य व्यंजन का उच्चारण स्थान क्या है |

उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी। लेकिन फिर भी यदि इस लेख से संबंधित और अधिक जानकारी चाहिए तो आप नीचे कमेंट के माध्यम से अपनी बात हम तक पहुंचा सकते हैं।

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FAQ

नासिक्य व्यंजन किसे कहते हैं

ऐसे वर्ड जिन का उच्चारण करते समय अधिकतर प्राणवायु नाक के माध्यम से बाहर निकलती है उन्हें  नासिक्य व्यंजन कहा जाता है।

नासिक्य व्यंजन का उच्चारण स्थान क्या है?

नासिक्य  के व्यंजन का उच्चारण स्थान नासिक्य  अर्थात ना होता है क्योंकि इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय प्राणवायु नाक के जरिए बाहर निकलती है।

नासिक्य  के व्यंजन कौन से होते हैं?

हिंदी वर्णमाला के ण, ङ, म, ञ, न को  नासिक्य व्यंजन कहा जाता है।

नासिक्य व्यंजन की संख्या कितनी है?

हिंदी व्याकरण में नासिक्य  के व्यंजनों की संख्या कुल 5 होती है।