निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल होत सुभाय।।
दोस्तों, हम में से कोई विरला ही होगा, जिसने संत कबीरदास जी का यह दोहा नहीं सुना होगा। इस दोहे से कबीर जी का यह तात्पर्य है कि, हमें अपनी निंदा अर्थात आलोचना करने वाले व्यक्ती को सदैव अपने पास रखना चाहिए, क्योंकि निंदा करने वाला व्यक्ति तो हमारी कमियां बताकर, बिना साबुन और पानी के ही हमारे मन को स्वच्छ कर देता है।
परंतु निंदा से हम सभी इतना डरते क्यों हैं? अपनी कमियां सुनना हम आखिर पसंद क्यों नहीं करते हैं? इसके दो ही कारण हैं, पहला, हमें केवल और केवल अपनी प्रशंसा सुनना ही अच्छा लगता है, और दूसरा हम उन्हीं लोगों के साथ रहना पसंद करते हैं, जो केवल हमारी झूठी या सच्ची प्रशंसा ही करते हैं। हम नहीं समझते हैं कि,वे या तो हमें खोने से डरते हैं, या हमारा दिल नहीं दुखाना चाहते हैं, या फिर उन्हें हमसे कोई लेना देना नहीं है।
ये दोनों ही बातें एकदम सही है, क्योंकि बहुत ही कम इंसान इस दुनिया में हैं, जो अपनी आलोचना या निंदा को बर्दाश्त कर सकने का हौसला रखते हैं। और यदि हम उन लोगों में से एक है, तो निश्चित ही यह हमारा सौभाग्य है।
परंतु यदि हम उन लोगों में से एक है,जिन्हें अपनी आलोचना सुनना बिल्कुल भी पसंद नहीं है, तो हम निश्चित ही उन लोगों से भी कोसो दूर रहते हैं,जो हमें हमारी अच्छाइयों के साथ-साथ, हमारी बुराइयों या गलतियों से भी हमें अवगत कराए।
सदैव हमारी आलोचना करने वाले व्यक्ती, हमारे वैरी ही हो,यह जरुरी नहीं है, उसी तरह सदैव हमारी तारीफ़ करने वाले लोग ही हमारे हितैषी नहीं हो सकतें हैं। कुछ लोग वाकई हमारे लिए अच्छा ही सोचते हैं,और हमें सही राह दिखाने की कोशिश करते हैं।ये लोग हमारे माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त, रिश्तेदार या कोई अन्य व्यक्ति हो सकते हैं। परंतु नासमझी में ही हम उनकी नसिहतों और आलोचनाओं को जलन, बुराई और न जाने कितनी ही उपमाएं दे देते हैं।
यहां पर हमें यह स्पष्ट होना अत्यंत आवश्यक है कि “आलोचना” और “बुराई” दोनों में एक महिन अंतर है। और हम उसी अंतर को पाट नहीं पाते हैं और अक्सर लोगों को समझने और पहचाननें में गलती कर बैठते हैं।
बुराई वह है जो दुर्भावनावश या दुख पहुंचाने के उद्देश्य से की जाती है, जबकि आलोचना किसी व्यक्ति की कोई बात पसंद ना आने पर अपनी राय या मत प्रकट करने को कहते है, इसे आप समीक्षा या टिप्पणी करना भी कह सकते हैं।
तो यदि जिस प्रकार हम अपनी प्रशंसा ही सुनने के आदि है, तो क्यों ना अपनी आलोचना सुनने की भी आदत डाल लें। ताकि इससे हमें हमारी कमियों का ज्ञान हो,और हम उन्हें सुधारने की कोशिश कर सकें।
कई बार हम जब कोई नया काम शुरू करते हैं, तो हमारी अपेक्षा होती है कि वह काम अच्छे से पूरा हो और इसके लिए हम अपनी संपूर्ण शक्ती भी लगा देते हैं।और परिणाम भी यदि हमारी अपेक्षानुरूप आ जाएं तो हमारी खुशी की भी कोई सीमा नहीं होती है। परंतु जिस प्रकार अपना बच्चा सभी को प्रिय ही लगता है, चाहें वह कितना भी शैतान या जिद्दी क्यो ना हो, उसी प्रकार कड़ी मेहनत से हमारे द्वारा पूरा किया हुआ कोई भी काम, हमें अपने बच्चे की ही तरह प्यारा ही लगेगा। और जिस प्रकार हम अपने बच्चे की बुराई किसी और के मुंह से नहीं सुन सकते,उसी तरह पूरी शिद्दत से किये गये हमारे उस काम की आलोचना भी हम बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। मगर इसमें तो हमारा नुकसान ही होता है। जबकि कई बार हमें पता भी होता है कि हमसे क्या कमी रह गई है, परंतु हम उसे एक्सेप्ट करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं।
दोस्तों, हम कई प्रकार के लोगों से जुड़े हुए होते हैं उनमें से कुछ हमें प्रिय होते हैं, कुछ अतिप्रिय होते हैं,और कुछ केवल हमारे जान पहचान के होते हैं। अब जाहिर सी बात है कि जो लोग हमारे प्रिय या अतिप्रिय होते हैं, हम उनका दिल कभी भी नहीं तोडना चाहेगे इसी प्रकार जिन्हें हम प्रिय है वे भी ऐसी कोई बात नहीं करना चाहेंगे जिसके कारण हम दुखी हो। और यही वज़ह है कि वे हमें हमारी कमियां बताकर हमें दुःख पहुंचाना नहीं चाहते हैं। और हम भी यही करते हैं।
परंतु यह बात सर्वथा गलत है। क्योंकि ऐसे में तो हम अपने अंदर झांकने की कोशिश ही नहीं करेगें।
वैसे दोस्तों, आलोचना सुनना जितना मुश्किल है, उतना ही कठिन है आलोचना करना। कुछ लोग आदत के अनुसार आलोचना कर बैठते हैं, और कुछ लोग मन में इच्छा होने के बावजूद किसी को कुछ समझा नहीं सकते हैं।
एक छोटा सा उदाहरण देकर हम इसे समझते हैं। मान लो यदि हमने किसी प्रतियोगिता में कोई गाना गाया है, और जजेस को वह पसंद नहीं आया और उन्होंने उसमें हमारी कमियां भी समझाई हैं, तो उस समय तो हम मर्यादा वश वह बातें सुन लेते हैं, पर जैसे ही हम वहां से निकलते हैं,जजेस को पार्शल, बेईमान, और ना जाने कितनी ही उपमाएं दे देते हैं। क्योंकि हमारे दोस्त, हमारे रिश्तेदार या हमारे जान पहचान वाले लोग तो हमारी आवाज की तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं, फिर जज को ही क्या परेशानी है, उन्हें तो कुछ नहीं समझता है। ऐसा हर प्रतियोगिता में होता हैं, क्योंकि हर प्रतिभागी खुद को श्रेष्ठ समझ कर ही इसमें भाग लेता है,और हार को बर्दाश्त नहीं कर पाता है।
परंतु एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति,जज के कमेंट्स को ध्यान से सुनता है और बुरा मानने के बजाय उन्हें आत्मसात करता है। और एक दिन अवश्य ही सफल होता है।
हमारे समाज में ही ऐसे कितने उदाहरण है कि जो लोग पहले किसी ना किसी वजह से, बहुत सी जगहों पर रिजेक्ट हुए हैं या उनकी किसी कमी की वजह से काफी आलोचना भी हुई है, और एक दिन उन्होंने ने ही सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड दिए है।
महानायक अमिताभ बच्चन को करियर के शुरुआती दौर में,हाईट, आवाज और अन्य चीजों को लेकर ना जाने कितनी ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है ।इसी प्रकार वॉल्ट डिज़्नी,जो मनोरंजन के क्षैत्र का एक जाना माना नाम है,परंतु क्या आप जानते हैं कि एक कंपनी द्वारा उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर दिया था कि उनके पास, इस क्षैत्र में काम करने के लिए आवश्यक कल्पना शक्ति नहीं है। इन दोनों ही लोगों ने अपनी आलोचनाओं को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा और अपने अंदर की कमियों को या तो दूर किया या अपनी ताकत बना लिया और स्वयं को जिस मुकाम तक पहुंचाया ये आज किसी से छिपा नहीं है। ऐसे अनेक उदाहरण है दुनिया में जिन्होंने कामयाबी का स्वाद चखने से पहले असफलताओं और आलोचनाओं का एक बुरा दौर भी देखा हैहमें वाकई अपने आपको इतना सक्षम बनने की आवश्यकता है कि हम अपनी कमियों को पहचाने, उन्हें जाने और उन्हें माने भी।और ऐसे में हमारे आसपास एक समीक्षक का होना ज़रूरी है जो हमें सही सलाह दे। हमें गलतियां दोहराने से बचाएं।
हमे इस बात का ध्यान हमेशा ही रखना चाहिए कि जो हमारे करीबी हैं, वो आदत से मजबूर होकर, प्रेम या मर्यादा की वजह से, उम्र और ओहदे का सम्मान करके आपकी झूठी तारीफ कर भी देंगे पर उसका आपको कोई फायदा नहीं होगा। अतः कोशिश करें कि उनके संपर्क में ज्यादा से ज्यादा रहें जो आपको जो सच बताएं। निश्चित ही आप जीवन में सफल होंगे।
“तारीफें तों सभी को पसंद है,
तू अपनी कमजोरियों को सुनने का हौसला रख…
कामयाबी कदम चुमेगी तेरे,
तेरी कमियों को जो तुझे बता दें,
साथ में वो मतवाला रख!!!”