निर्भय बन

nirbhay ban

“भय से तू द्वंद कर, आवाज अपनी बुलंद कर,

किसी से ना डर तू, हर बुराई से यूं जंग कर,

सत्य को करके वंदन,

निर्भय बन, तू निर्भय बन” ।

उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि, किसी भी बुराई का जन्म, हमारे भय की वजह से ही होता है। भय हमें केवल कमजोर ही बनाता है, परंतु यह भी सच है कि सत्य के आगे भय भी पराजित हो जाता है।अतः हमें सत्य का सहारा लेकर अपने अंदर के हर भय से डटकर मुकाबला करके निर्भय बनना होगा।

डर,खौफ, दहशत, भीती, ये सभी भय के ही अलग अलग नाम है, जो जीवन के हर मोड़ पर किसी ना किसी रूप में,हमारे सामने आकर खड़े हो जाते हैं।हम जितना दूर रहने की कोशिश करते हैं, भय उतना ही हमारे पास आना चाहता है।

जीवन के हर पड़ाव पर हमारे भय के कारण और उनका स्वरुप अलग-अलग होते हैं। जैसे बचपन में हम जिन छोटी-छोटी बातों से ड़रते थे, थोड़ा बड़ा हो जाने पर वही बातें हमें बेमानी सी लगने लगती है।

भय के अनेक कारण और रुप होते हैं, जो समय के साथ-साथ बदलते रहते हैं। जैसे बचपन से शुरू करके बड़े होने तक के हमारे जीवन के सफर में, हमारा सामना कई प्रकार के भय से होता है। कभी जानवरों से, माता-पिता या शिक्षकों की डांट या मार से, भूत प्रेत से, कभी किसी के रुठने से, किसी के दूर जाने से, किसी काम को करने से, ऊंचाइयों से, पानी से, बीमारी से आदि ऐसे अनेक भय हमारी राह में हमेशा डटकर खड़े होते हैं। और हम भी इनका सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं।

इन सब पर तो हम आसानी से मात कर सकते हैं, मगर हमारे जीवन के दो सबसे बड़े भय ऐसे हैं, जिनसे कभी-कभी हम हार जाते हैं, पहला हैं असफलता या पराजय का भय,और दूसरा मृत्यु का भय। मगर याद रखिए ये दो भय ऐसे हैं, जिनको हराकर ही हम जिंदगी की हर जंग को जीत सकते हैं।

हम बचपन से ही, पुस्तकों में ,बड़े बुजुर्गो से , शिक्षकों से या प्रवचनों में यही पढ़ते या सुनते आए हैं कि जीवन में हमें कभी भी, किसी से भी डरना नहीं है बल्कि निडर या निर्भय बनकर हर परिस्थिति का सामना करना है। भय को हराकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। यह बात 100% सही है। डर हमें हमेशा आगे बढ़ने से रोकता है। भय का प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर इस तरह हावी हो जाता है,कि हमारे सोचने और समझने की शक्ति को भी छीन लेता है।और हम हार मान लेते हैं।

याद रखिए, पशु हो या इंसान, हम उनसे जितना डरते हैं,वे हमें उतना ही और डराते हैं। इसलिए हमें दोनों का सामना बहादूरी से करना चाहिए।

हमारे ही जीवन के कुछ अनुभव ऐसे हैं, जिनसे सीखकर या प्रेरणा लेकर हम हमारे इस भय रुपी राक्षस पर आसानी से जीत हासिल कर सकते हैं। जैसे हम एक छोटे-से उदाहरण से इस बात को समझते हैं,कि जब एक छोटा सा बच्चा  साइकिल चलाना सीखता है,तो पहले तो गिरने के ड़र से वो प्रयास ही नहीं करना चाहता, परंतु साइकिल चलाने की तो उसकी इच्छा है ही, तो अपनी सारी हिम्मत इकट्ठा करके वो प्रयास करने के लिए तैयार होता है, गिरता है, फिर उठता है और फिर से प्रयास करता है और तब तक प्रयास करता है,जब तक कि वो साइकिल चलाना सीख नहीं लेता। यदि गिरने,चोट लगने या असफल होने के भय से यदि वह बच्चा हार मान कर बैठ जाता तो कभी भी कामयाब नही होता। हमारे आसपास ऐसे ही अनेक उदाहरण है।

इसीलिए हमारे जीवन में कई ऐसे मौके आते हैं,जब हमें निर्भय होकर फैसले लेने होते हैं, और निर्भय होकर प्रयास करने होते हैं।

कभी भी असफलता के ड़र पीछे हट कर, हमें हमारी क्षमताओं को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। यदि हम असफल होने के भय को हराने में सक्षम हो जाते हैं तो हम हर कामयाबी को मुठ्ठी में कर सकते हैं।

कभी-कभी हमारा भय हमें कुछ ऐसी बातें करने पर मजबूर कर देता है,जो हम कभी नहीं करना चाहते हैं, जैसे झूठ बोलना, बातें छुपाना इत्यादि जो हमें और भी गलत रास्ते पर लेकर जा सकता है। क्योंकि एक झूठ को छुपाने के लिए हमें कई और झूठ बोलने पड़ते हैं। यदि हम हमारे दृष्टिकोण से सही है, तो हमें झूठ बोलने की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए।

अतः हम कह सकते हैं कि भय के परिणाम स्वरुप ही असत्य की निर्मिती होती है। अतः यहां भी हमें निर्भय होने की बेहद जरूरत है। असत्य कई बुराइयों और परेशानियों का कारण होता है। अतः यदि हम गलत है, या हमसे कोई भूल हो गई है, तो हमें निर्भय होकर तुरंत उसे मान लेना चाहिए और सुधारने की कोशिश करने का साहस दिखाना चाहिए।

आजकल महिला ,पुरुष ,बच्चे,बुढ़े सभी के ही साथ, हिंसा की घटनाओं में बहुत ज्यादा वृद्धि हो रही है। ऐसे में हमें अपने अंदर, निड़र,और साहसी बनकर हर विपरीत और अनपेक्षित परिस्थिति का सामना करने का हौसला जगाना ही होगा।  हमें निर्भय बनना पड़ेगा। हमारे लिए या हमारे अपनों के लिए हमें हर भय का सामना करना ही होगा।          

निर्भय होने का अर्थ कदापि यह नहीं है कि हम स्वच्छंद हो जाएं और अपनी मनमानी करें। निर्भय होने का अर्थ है, अपनी हिम्मत और साहस दिखाकर ऐसी बातों पर विजय प्राप्त करना जो गलत है और  हमारे आत्मविश्वास को कम करती है, हमें आगे बढ़ने से रोकती है,और विपरीत परिस्थितियों में हमारा हौसला छिन लेती है।

हमारा दूसरा सबसे बड़ा डर है मृत्यु का डर,और इसी डर की वजह से हम कई कामों को करने से हिचकिचाते हैं। मृत्यु तो अटल है, इसलिए उसके डर से हम अपने आप को जीते जी तो नहीं मार सकते हैं। जरा सोचिए सीमा पर खड़ा वो जवान जिसे पता है कि मृत्यु कभी भी आ सकती है, क्या युद्ध में कभी उसे पीछे हटते देखा हैं, या दमकल कर्मचारी,क्या खुद को हानी ना पहुंचे इसलिए वो आग बुझाने से पीछे हट जाता है।हमारे आसपास कितने ही ऐसे उदाहरण है जिसमें लोग बेखौफ होकर अपनी जान की परवाह किए बिना दुसरो की खातिर मृत्यु से दो दो हाथ कर लेते हैं।

परंतु ये भी सच है कि जहां डरना और सावधान रहना जरूरी है वहां हमें बिना हिचकिचाहट के डर कर जीना चाहिए। जैसे अभी कोरोना की ही परिस्थिती।

अतः निर्भय बने और हर परिस्थिति का सामना करे। हम अगर ठान ले तो बहुत कुछ हो सकता है।इस बात को हमेशा याद रखें। क्योंकि डर के आगे ही जीत है।