संधि की परिभाषा प्रकार और उदाहरण – Sandhi in Hindi

संधि की परिभाषा

संधि का अर्थ होता है, जोड़, मेल या योग। हिन्दी व्याकरण के अनुसार संधि की परिभाषा इस प्रकार होती है, ” दो अक्षरों या वर्णों के मेल को संधि कहते हैं।”

इसे और अधिक अच्छे से समझते हैं।

हम अक्सर बोलते हुए, दो शब्दों को जोड़कर बोलते हैं। जैसे परमात्मा, इस शब्द में परम और आत्मा, ये दो शब्द आपस में जुड़े हुए हैं। और इनके योग से एक नए विकारी शब्द का निर्माण हो रहा है, जो दोनों शब्दों का सम्मिलित अर्थ स्पष्ट कर रहा है। इन शब्दों में, पहले शब्द के आख़री वर्ण की ध्वनि और दूसरे शब्द के पहले वर्ण की ध्वनि, मिलकर एक नए वर्ण का निर्माण कर रहे हैं, जिससे एक नया शब्द बनता है जिसमें दोनों शब्दों का अर्थ सम्मिलित हो।

इसी तरह, इत्यादि, सूर्यास्त, सूर्योदय आदि शब्द, संधि शब्दों के ही उदाहरण हैं, जिनमें, पहले शब्द के आखिरी वर्ण की ध्वनि और दूसरे शब्द के पहले वर्ण की ध्वनि एक दूसरे में मिलते हैं और दोनों शब्दों के अर्थ सहित एक अन्य शब्द का निर्माण करते हैं।

संधि के उदाहरण

जैसे रमेश, यह शब्द, रमा और ईश इन शब्दों से मिलकर बना है, उसमें पहले शब्द रमा, के आखरी वर्ण की ध्वनि आ, और दूसरे शब्द ईश, के पहले वर्ण ई की ध्वनि ई, मिलकर एक वर्ण ए, बना रहे हैं, (आ+ई=ए), और इस तरह नया बनने वाला शब्द होगा, रमेश। कुछ और उदाहरण देखते हैं।

गिरि+ ईश = गिरीश

मुख्य+ आलय= मुख्यालय

सूर्य+ अस्त= सूर्यास्त

नि: संकोच= निसंकोच

तपो: + वन= तपोवन

संधि के प्रकार और उदहारण

ये सभी संधि शब्द, कुछ नियमों के आधार पर बनाएं जाते हैं। उन नियमों को हम संधि के प्रकार, के अनुसार देखते हैं।  संधि के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं,

1 स्वर संधि

2 व्यंजन संधि

3 विसर्ग संधि

अब हम इसे विस्तार से जानते हैं।

स्वर संधि

जब दो स्वर साथ में मिलते हैं, तो वहां पर स्वर संधि होती है। इस प्रकार स्वर संधि की परिभाषा होगी, “दो स्वरों के मेल से

जो परिवर्तन होता है, या जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।” साधारण शब्दों में कहें तो, स्वर+ स्वर = स्वर संधि।

स्वर संधि के पांच प्रकार होते हैं,

1 दीर्घ स्वर संधि

2 गुण संधि

3 वृद्धि संधि

4 यण संधि

5 अयादि संधि

अब संधि के इन सभी प्रकारों को विस्तार से समझते हैं।

दीर्घ संधि

जब किसी ह्स्व या दीर्घ सजातीय स्वर का मेल, किसी ह्स्व या दीर्घ सजातीय स्वर से होता है, तो इससे उत्पन्न विकार, दीर्घ स्वर ही होता है। और इस प्रकार की संधि को, दीर्घ संधि कहते हैं।

(ह्स्व स्वर होते हैं, अ, इस और उ तथा दीर्घ स्वर होते हैं आ, ई और ऊ)

जैसे,

1 ह्स्व+ ह्स्व= दीर्घ  (अ+ अ =आ, इ + इ = ई, उ + उ= ऊ)

2 ह्स्व दीर्घ =दीर्घ।   (अ +आ =आ, इ +ई= ई, उ +ऊ = ऊ)

3 दीर्घ + ह्स्व=दीर्घ  (आ + अ=आ, ई + इ= ई, ऊ + उ= ऊ)

4 दीर्घ +दीर्घ = दीर्घ (आ +आ =आ, ई +ई =ई, ऊ+ ऊ= ऊ)

इसे हम उदाहरण के द्वारा और अधिक अच्छे से समझते हैं।

परम+ अर्थ = अ +अ =आ = परमार्थ

नील+आकाश= अ +आ = आ = नीलाकाश

विद्या+ अर्थी= आ+ अ = आ= विद्यार्थी

विद्या+ आलय= आ+ आ = आ = विद्यालय

अभि+ इष्ट= इ+ इ = ई = अभीष्ट

मुनि+ ईश = इ + ई = ई = मुनीश

हरी+ इंद्र= ई+ इ = ई = हरीन्द्र

रजनी+ ईश = ई+ ई = ई = रजनीश

गुण संधि

यदि किसी संधि शब्द के, पहले शब्द के अंतिम वर्ण में अ या आ स्वर हो और दुसरे शब्द के पहले वर्ण में इ या ई, या उ या ऊ स्वर हो, तो इन दोनों स्वरों के मिलने से क्रमशः ए और ओ स्वर उत्पन्न होता है, इस संधि को गुण संधि कहते हैं। यानी कि,

अ/ आ + इ/ई = ए

अ/आ + उ/ऊ= ओ

उदाहरण के लिए,

गण+ ईश= अ+ई= ए= गणेश

रमा+ ईश= आ+ई= एक= रमेश

सूर्य+उदय= अ+उ= ओ= सूर्योदय

महा+ उत्सव= आ+ उ= ओ= महोत्सव

वृद्धि संधि

जब अ या आ इन स्वरों के सामने दूसरे शब्द का पहला स्वर ए या ऐ हो, या अ तथा आ स्वर के सामने दूसरे शब्द का पहला स्वर ओ या औ हो तो क्रमशः ऐ तथा औ  स्वर की उत्पत्ति होती है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे,

अ/आ+ ए/ऐ =ऐ

अ/आ+ओ/औ = औ

उदाहरण के लिए,

सदा+ एव= आ+ ए= ऐ= सदैव

एक+एक = अ+ ए=  एकैक

जल+औषध= अ +औ =औ =जलौषध

यण संधि

जब इ/ई, उ/ऊ तथा ऋ इन स्वरों के आगे, दूसरे वर्ण का पहला स्वर विजातीय हो, तो इ/ई के लिए य् ,उ/ऊ के लिए व् तथा ऋ के लिए र् वर्ण आते हैं, वहां पर यण संधि होती है। जैसे,

इ/ ई + विजातीय स्वर= य्

उ / ऊ + विजातीय स्वर= व्

ऋ + विजातीय स्वर= र्

उदाहरण के लिए,

इति+ आदि= इत्यादि (इ+ आ =य्)

सु+ अल्प= स्वल्प (उ+ अ= व्)

अयादि संधि

जब, ए, ऐ, ओ या औ इन संयुक्त स्वरों के सामने, दूसरे शब्द का पहला वर्ण कोई अन्य स्वर हो तो, ए का अय्, ऐ का आय्, ओ का अव् तथा औ का आव् हो जाता है और इनके अंतिम वर्ण य् और व् में, दूसरे शब्द का पहला स्वर मिलकर एक पूर्णाक्षर बन जाता है और एक नया सार्थक विकारी शब्द बन जाता है। जैसे,

ए+ अ = अय् + अ

ऐ+ अ= आय्+ अ

ओ+ अ= अव्+ अ

औ+ अ= आव्+ अ

जेउदाहरण के लिए,

चे+ अन= चयन ( ए+ अ= अय)

गै+ अन= गायन (ऐ+ अ= आय)

व्यंजन संधि

स्वर और व्यंजन, आप समझते ही है। हिंदी वर्णमाला में   स्वर तथा   व्यंजन होते हैं। हिन्दी व्याकरण के अनुसार,  व्यंजन संधि की परिभाषा इस प्रकार होती है, ” जब किसी व्यंजन का व्यंजन से, या स्वर से मेल या संधि होती है, तो जो परिवर्तन या विकार उत्पन्न होता है, उसे व्यंजन संधि कहते है।”

साधारण शब्दों में कहा जाए तो, जब दो शब्दों की संधि हो रही हो, और उनमें से यदि पहले शब्द का आखिरी वर्ण यदि व्यंजन हो और दूसरे शब्द का पहला वर्ण यदि स्वर या व्यंजन हो तो वहां पर व्यंजन संधि होती है। अर्थात,

व्यंजन+व्यंजन= व्यंजन संधि, व्यंजन + स्वर= व्यंजन संधि

उदाहरण के लिए,

सत्+ चरित्र= सत्चरित्र

व्यंजन संधि के कुछ नियम होते हैं, इन्हें जानने के पहले हमें कुछ बातों को समझना जरुरी है, जिससे हमें व्यंजन संधि और आगे विसर्ग संधि को समझने में आसानी होगी।

हिन्दी वर्णमाला में, संयुक्ताक्षरों को छोड़ कर, क से लेकर ह तक कुल मिलाकर तैंतीस व्यंजन होते हैं, इनमें से क से लेकर म तक के व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं। स्पर्श व्यंजनों को पांच वर्गों में बांटा गया है, जो क्रमशः क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग हैं। क वर्ग में आने वाले वर्ण हैं – क् ख् ग् घ् और ड्, च वर्ग में आने वाले वर्ण हैं – च् छ् ज् झ् ञ और  ट वर्ग में आने वाले वर्ण हैं – ट्, ठ् ड् ढ् ण् और त वर्ग में आने वाले वर्ण हैं- त् थ् द् ध् और न्, तथा प वर्ग में आने वाले वर्ण हैं – प् फ् ब् भ् और म्। अब हम व्यंजन संधि के नियमों को जानते समय यदि ये कहते हैं कि किसी भी वर्ग का प्रथम वर्ण, तो ये होंगे – क्, च्, ट्, त् या प्, यदि कहते हैं कि किसी भी वर्ग का पांचवां वर्ण, तो ये होंगे – ड्, ञ, ण्, न्, और म्, इसी तरह बाकी वर्णों का क्रम भी आप समझ गए होंगे। इनके अलावा य्, र्, ल्, व् इन वर्णों को अंतरस्थ व्यंजन और श्, ष् स् और ह् को उष्म व्यंजन कहते हैं। अब आप इसे ध्यान में रखिए। अब हम व्यंजन संधि के नियमों को जानते हैं,

1 जब किसी भी वर्ग के प्रथम वर्ण का योग, किसी स्वर या किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से, या फिर अंतरस्थ वर्ण होता है, तो प्रयुक्त प्रथम वर्ण,  अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जाता है। जैसे,

किसी वर्ग का प्रथम वर्ण + स्वर/ किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण/ य्, र्, ल्, व् = प्रथम वर्ण का वर्ग के तीसरे वर्ण में परिवर्तन

उदाहरण,

षट्+ आनन= षडानन

दिक्+ अंबर= दिगंबर

सत्+ गुरु= सद्गुरु

दिक्+ गज= दिग्गज

2 संधि करते समय, किसी भी वर्ग के पहले वर्ण का योग, न् या म् वर्ण यानी कि अनुनासिक से हो, तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पांचवां वर्ण आ जाता है। इसे अनुनासिक संधि  कहते हैं।

उदाहरण

सत्+ मार्ग= सन्मार्ग

जगत्+ नाथ= जगन्नाथ

वाक्+ मूर्ति= वाग्मूर्ति

षट्+ मास= षण्मास

3 संधि करते समय, यदि म् का योग, किसी स्वर से होता है तो, वह स्वर म् में मिल जाता है और यदि म् का योग किसी व्यंजन के साथ होता है तो, म् से जुड़े हुए व्यंजन पर अनुस्वार आ जाता है।

उदाहरण

सम्+ आचार= समाचार

सम्+ गीत= संगीत

सम्+बंध= संबंध

सम्+ गठन= संगठन

सम+ क्रमण= संक्रमण

5 संधि करते समय, जब किसी स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ) का योग यदि छ् वर्ण से होता है तो, छ् वर्ण च्छ में बदल जाता है।

उदाहरण

स्व+छंद= स्वच्छंद

आ+ छादित = आच्छादित

परि+ छेद= परिच्छेद

वि+ छिन्न= विच्छिन्न

मातृ+ छाया= मातृच्छाया

6 जब न् की संधि, किसी व्यंजन के साथ होती है तो, दोनों शब्द जुड़ जाते हैं और न् का लोप हो जाता है।

आत्मन्+ प्रशंसा= आत्मप्रशंसा

आत्मन्+ हत्या= आत्महत्या

7 त या द की संधि

जब त् या द् वर्ण का योग, विभिन्न व्यंजनों से होता है तो क्या परिवर्तन होता है, क्रमशः देखते हैं।

(अ) जब त् या द् का योग, श् वर्ण से होता है तो ये च्छ बन जाता है।

उदाहरण,

उत्+ छाद= उच्छाद

(आ) जब त् का योग ल वर्ण से होता है, तो त् का परिवर्तन ल् में हो जाता है।

उदाहरण,

उत्+ लेखनीय= उल्लेखनीय

(इ)जब , त् के साथ ट या ठ का योग होता है तो, त् का ट हो जाता है।

सत्+ टिक= सटीक

(ई) जब त् का योग ज या झ के साथ होता है, तो त का ज में परिवर्तन हो जाता है।

उत्/+ ज्वल= उज्जवल

(उ )त् का योग च या छ के साथ होता है, तो त का परिवर्तन च में हो जाता है।

सत्+ चरित्र= सच्चरित्र

(ऊ)त् का योग यदि ह के साथ होता है तो त्, द में परिवर्तित हो जाता है और ह, ध् में बदल जाता है।

तत्+ हित= तद्धित

विसर्ग संधि

जब विसर्ग (:) का, स्वर या व्यंजन के साथ मेल होता है तो वहां पर जो विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

विसर्ग संधि के उदाहरण,

मनोरथ= मन: रथ

 दुर्योधन= दु: योधन

विसर्ग संधि के भी कुछ नियम होते हैं, जो इस प्रकार है,

1 दो शब्दों की संधि करते समय, यदि विसर्ग के पहले अ स्वर हो, और बाद में, किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा या पांचवां वर्ण हो, या  य, र, ल, व, ह, में से कोई एक वर्ण होता है, तो विसर्ग का  “ओ” में परिवर्तन हो जाता है।

जैसे,

अ: + आ = ओ

अ:+ किसी भी वर्ग का तीसरा/ चौथा/ पांचवां वर्ण/ य,र,ल,व,ह = और

उदाहरण,

सर: + कार = सरोकार ( अ:+आ= ओ)

रज: + गुण= रजोगुण (अ:+ ग= ओ)

यश:+धन= यशोधन (अ:+न= ओ)

तेज:+ निधि= तेजोनिधी (अ:+इ = ओ)

2 संधि करते समय, यदि विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो, और विसर्ग के बाद यानी दूसरे शब्द का पहला वर्ण, किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा या पांचवां वर्ण हो, या कोई अंतरस्थ वर्ण (य, र, ल, वह या ह) हो या फिर कोई अन्य स्वर हो, तो विसर्ग के स्थान पर र् आ जाता है। जैसे,

अ/ आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर (:)+ किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पांचवां वर्ण/ अंतरस्थ वर्ण/ कोई स्वर= (:) के स्थान पर र्

उदाहरण,

नि:+ रव= नीरव

दु:+ गा = दुर्गा

आयु:+ वेद= आयुर्वेद

आशी:+वाद= आशीर्वाद

नि:+ अंतर= निरंतर

3 संधि करते समय, यदि पहले शब्द में विसर्ग के बाद दूसरे शब्द का पहला वर्ण च, छ या श वर्ण हो तो, विसर्ग का परिवर्तन श् में हो जाता है।

जैसे,

विसर्ग (:)+ च/ छ/ श =( 🙂 के स्थान पर श्

उदाहरण,

नि: + छल = निश्छल

आ+ चर्य= आश्चर्य

दु:+ शासन= दुशासन

4 संधि करते समय, यदि पहले शब्द में विसर्ग के बाद, दूसरे शब्द का पहला वर्ण यदि, त, थ या क हो तो, विसर्ग का परिवर्तन स् में हो जाता है। जैसे,

विसर्ग (:) + त/थ/के= विसर्ग (:) के स्थान पर स्

भा:+ कर= भास्कर

नि:+ तेज= निस्तेज

5 संधि करते समय, यदि विसर्ग के अ या आ स्वर हो, और क, ख, प या फ हो तो, विसर्ग का स् में परिवर्तन हो जाता है।

जैसे,

अ: /आ: + क/ ख/ प /फ = स्क/ स्ख/ स्प/स्फ

वन:+ पति= वनस्पति

उदाहरण,

6 संधि करते समय, यदि विसर्ग के पहले, इ या उ स्वर हो, और विसर्ग के पश्चात क, ख, ट, ठ, प, फ वर्ण हो तो विसर्ग का परिवर्तन ष् वर्ण में हो जाता है।

जैसे,

इ: / उ: + क/ ख/ ट /ठ/ प /फ = विसर्ग का परिवर्तन ष् में

उदाहरण,

नि: + कलंक= निष्कलंक

नि:+ कपट= निष्कपट

दु:+ प्रभाव= दुष्प्रभाव

चतु:+ कोण= चतुष्कोण

7 संधि करते समय यदि, विसर्ग के पहले अ हो और साथ ही विसर्ग के पश्चात क या प वर्ण हो, तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होगा। जैसे,

अ:+ क / प= विसर्ग में कोई बदलाव नहीं होगा

उदाहरण,

प्रातः + काल= प्रातः काल

8 संधि करते समय, यदि विसर्ग के श, ष या स में से कोई वर्ण आता है, तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होगा या फिर विसर्ग श्, ष् या स्  में बदल जाता है। जैसे,

विसर्ग+ श / ष / स= विसर्ग में कोई बदलाव नहीं/ श्/ ष्/ स्

नि:+ सहाय= नि: सहाय

दु: + शासन= दुशासन

9 संधि करते समय यदि, विसर्ग के पहले अ आता है और विसर्ग के बाद अ को छोड़कर कोई अन्य स्वर आता है तो विसर्ग हट जाता है, जैसे

अ: +  अ को छोड़कर अन्य स्वर = विसर्ग का हटना

उदाहरण,

अतः:+ एव= अतएव

FAQ

संधि के कितने भेद होते हैं?

संधि के ३ भेद होते हैं। स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि

विद्यालय में संधि कौन सी है?

विद्यालय दीर्घ सजातीय स्वर से होता है इसीलिए यह स्वर संधि हैं। “विद्यालय= विद्या + आलय“, विद्या+ आलय= आ+ आ = आ = विद्यालय।

विद्यार्थी में कौन सी संधि होती है?

विद्यार्थी में स्वर संधि है और यह एक दीर्घ स्वर संधि है। विद्या+ अर्थी= आ+ अ = आ= विद्यार्थी

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