शांति की इच्छा हो तो पहले इच्छा को शांत करो। 

आशायाः ये दासास्ते दासाः सर्वलोकस्य ।

आशा येषां दासी तेषां दासायते लोकः ।।

दोस्तों, पद्यमालिका नामक ग्रंथ में यह संस्कृत श्लोक लिखा है, जिसका अर्थ है, जो इच्छाओं के दास होते हैं, वे इस जग के दास होते हैं, और इच्छा जिनकी दासी होती हैं, संपूर्ण जग उनका दास होता है।

दोस्तों, गीता में भी कहा गया है कि, इच्छा सभी दुखों की जननी होती है। जिसका मतलब है कि मनुष्य यदि अपने जीवन में सुख और शांति चाहता है, तो उसे अपनी इच्छाओं का त्याग करना चाहिए। क्योंकि इच्छाओं से ही कामनाएं उत्पन्न होती है और कामनाओं की पुर्ती ना होने पर दुख, अशांति और क्षोभ उत्पन्न होता है। 

दोस्तों, वास्तव में देखा जाए तो, इच्छाएं तो मनुष्य के साथ उसके जन्म लेते से ही जुड़ जाती है, तो फिर एक सर्व सामान्य मनुष्य के लिए इच्छाएं ना करना, यह तो बड़ा ही मुश्किल काम होता है, और लगभग नामुमकिन भी। मनुष्य की इच्छाओं का कहीं भी अंत नहीं है, उसकी एक इच्छा पूरी होती नहीं है, कि तुरंत दूसरी इच्छा जन्म ले लेती है। इसलिए मनुष्य के मन से इच्छाओं को पूर्ण रूप से समाप्त करना तो, बिल्कुल भी संभव नहीं है। हां, लेकिन इच्छाओं को नियंत्रण में रखना जरुर संभव है। 

इच्छा करना, कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन इच्छा का रुपांतरण जब कामना में और कामना का रुपांतरण जब हवस में हो जाता है, तो फिर जरुर ऐसी किसी इच्छा का, मन में आना ही गलत है, जो मनुष्य को गलत रास्ते पर भी लेकर जा सकती है। क्योंकि एक बार यदि मनुष्य इस प्रकार की, इच्छाओं के मायाजाल में फंस जाता है तो फिर बस फंसता ही चला जाता है। और अंततः उसे दुख और अशांती ही मिलती है।

दोस्तों, यह मनुष्य का मूल स्वभाव होता है कि जब उसके मन की इच्छाओं की पूर्ति होने लगती है, तो वह और इच्छाएं करने लगता हैं। और जब उसकी छोटी छोटी इच्छाएं आसानी से पूरी होती जाती है, तो धीरे धीरे वह उनसे थोड़ा और बड़ा सोचने लगता है, और इसी तरह बड़ा सोचते सोचते वह बड़ी बड़ी और अमर्याद इच्छाएं करने लगता है। और जब उसकी वो इच्छाएं पूरी नहीं होती है, तो फिर उसके मन में क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से फिर अशांती और अशांती से दुख उत्पन्न होता है।

दोस्तों, यूं तो हमारे दुखों के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण तो हमारी इच्छाएं ही है, हमारी अनंत इच्छाओं और उन इच्छाओं की पूर्ति ना होने पर पैदा होने वाला संताप और अवसाद ही तो दुख है। 

हर एक व्यक्ति, अपने जीवन में सुख, समृद्धि और यश की कामना तो करता ही है, लेकिन जाने अनजाने में वो एक रेस में भी शामिल हो जाता है। एक ऐसी रेस जिसमें, हर कोई एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ में शामिल रहता है और हर व्यक्ति ऊंचे से ऊंचा पद पाना चाहता है, लेकिन इस होड़ में वे सभी, अपनी सुख शांति को भी दांव पर लगा देते हैं। एक अनिश्चित सुख के पीछे भागते हुए वे निश्चित रूप से दुख ही पाते हैं। क्योंकि इस रेस में चाहे जितने भी लोग शामिल हो, जीत तो बस एक को ही मिल पाती हैं। 

इसलिए आकांक्षाओं का होना गलत नहीं है, लेकिन असीमित और असंभव महत्वाकांक्षाओं का होना निश्चित ही दुखदाई है।

‘संतोषं परमं सुखं’ यह बात तो हमने बहुत बार सुनी ही होगी। इसका मतलब है कि, जो हैं, उसी में समाधान मानने में ही सबसे बड़ा आनंद हैं। लेकिन फिर भी ईश्वर ने हमें जो दिया है, उसमें हम कभी भी सुखी और संतुष्ट नहीं रहते हैं। अपनी अनंत इच्छाओं की पूर्ति के लिए अनंत प्रयास करते हैं और इन प्रयासों के विफल होने से अनंत दुख भी पाते हैं।

तो फिर क्या हम इच्छा करना छोड़ दें? और यदि हां तो फिर हम इच्छा करना कैसे छोड़ दें? इन प्रश्नों का उत्तर हमें कौन दे सकता है? क्योंकि ऐसा कौन है इस संसार में, जिसने अपने जीवन में एक भी इच्छा ना की हो। और जब हम सभी जानते हैं कि इच्छाओं को छोड़ना, उनसे मुंह मोड़ना बिल्कुल भी आसान नहीं है, तो फिर हम कैसे अपने आप को रोक सकते हैं। इन सभी प्रश्नों का एक ही जवाब है, आत्म नियंत्रण और आत्म संयम। खुद पर नियंत्रण रखने से, हम अपने आप ही संयमित हो जाते हैं और अपनी इच्छाओं और कामनाओं को भी काबू में रख सकते हैं। यदि हम उन बातों की इच्छा करें, जो हमारे बस में हो, तो हम उन्हें पूरा भी कर सकते हैं और हमें दुखी भी होना नहीं पड़ता है।

दोस्तों, पुराने लोग अक्सर ये कहा करते थे कि, “जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाने चाहिए।” तो अगर आप अपने जीवन में शांति पाना चाहते हैं तो इस बात को, जरुर अपना लिजिए। इसके लिए कुछ बातें हमेशा ध्यान में रखें।

पहली बात, इच्छाएं वही करो, जिन्हें हम पूरा कर सकते हैं। जिन इच्छाओं की पूर्ति करना, हमारे लिए असंभव है, उनके बारे में विचार करने से भी दुख ही मिलेगा। जैसे यदि हमारी तनख्वाह केवल इतनी ही है कि हम अपनी बेसिक जरुरतों को भी बड़ी मुश्किल से पूरा कर पा रहे हैं, ऐसे समय में, हम यदि बड़ी गाड़ी की इच्छा करें, बस शौक की खातिर गहने लत्ते खरीदने चले जाएं, बड़े बड़े होटेल्स में खाना खाने चले जाएं, अपनी और अपने परिवार की नाजायज मांगों को पूरा करने लग जाएं तो फिर क्या होगा?

एक तो यह बेमानी होगा और दूसरा यह हमारी हैसियत से भी बाहर होगा। और जब हम अपनी इन इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाएंगे, तो जाहिर है कि हम दुखी ही होंगे। इसी तरह हम अपने घर का किराया तक मुश्किल से भर पा रहे हैं और बड़ा घर खरीदने की इच्छा करते हैं तो भी यही होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि, इच्छाएं वही करें जो हमारी हैसियत में हो।

दूसरा यदि हम अपनी योग्यता के परे, किसी उच्च पद की कामना करते हैं तो क्या होगा? तो होगा वही कि हम केवल उस पद पर पहुंचने के लिए निर्रथक संघर्ष करते रहेंगे और हमें दुख और मानसिक अशांति के अलावा, और कुछ भी नहीं मिलेगा। इसलिए अपना मूल्यांकन करें और फिर उसके अनुसार इच्छा करें। और साथ ही अपनी योग्यता को बढ़ाकर काबिल बनने की कोशिश करें, तब तो आपकी इच्छा जरूर पूरी हो सकती है।

तीसरा, यदि हम दूसरों को देखकर, उनके पास जो है, उसे पाने की इच्छा करेंगे तो, जो कुछ भी हमारे पास है, उसकी किमत ही नहीं कर पाएंगे। यह बात बुरी जरुर लग सकती है लेकिन यह सच है कि, हर इंसान के पास, उसकी क्षमता और योग्यता के अनुसार ही सब कुछ होता है। 

हम कुछ पा ही नहीं सकते हैं और हमेशा एक जैसी स्थिति में ही रहेंगे, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है दोस्तों। हम भी अपने जीवन में सब कुछ पा सकते हैं, लेकिन हमें अपनी योग्यता और क्षमता बढानी होगी। केवल इच्छा करने से कुछ भी नहीं होगा, प्रयत्न तो करना ही होगा। 

तो दोस्तों, जीवन में यदि सुख और शांती से रहना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपनी इच्छाओं को सीमित कर लें। वे ही इच्छाएं करें, जिन्हें पूरा करना आपके बस में हो और यदि आपके बस में नहीं है, तो आप अपनी योग्यता और क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करें, बस ये बातें आप हमेशा ध्यान में रखें और शांति से जीवन जिएं।

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