स्व प्रेरणा जीवन की एक राह

“ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि, हर तक़दीर के पहले 

ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे,बता तेरी रज़ा क्या है।”

स्व प्रेरणा (Self motivation) की बात चले और मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल के इस शेर का जिक्र ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता है। इस शेर के द्वारा शायर यह कहना चाहते हैं कि, हमें  अपने आप को इतना काबिल बनाना चाहिए, कि हम अपनी तकदीर का फैसला खुद ही कर सके।

स्व प्रेरणा, अर्थात खुद को प्रेरित करना, दूसरे शब्दों में किसी भी कार्य को करने के लिए स्वयं को तैयार करना या प्रोत्साहित करना ही स्व प्रेरणा है। हमारे जीवन में अकसर कई मौके ऐसे आते हैं, जब हमें इस बात की आवश्यकता होती है कि हम दूसरों के साथ-साथ खुद को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा दे।

कभी-कभी हम किसी कार्य को शुरू करने के पहले ही, ये सोचकर पीछे हट जाते हैं कि शायद हम इसे कर ही नहीं पाएंगे। मगर जब तक हम उस काम को करके देखेंगे नहीं, हम कैसे मान लेते हैं कि यह काम हमारे लिए नामुमकिन है। हमें कम से कम एक बार कोशिश करके तो देखना ही चाहिए कि क्या वाकई हम वो काम नहीं कर सकते। इस समय हमें अपने आप को यह समझाने की जरूरत होती है कि, यदि ठान लिया जाएं तो दुनिया का कोई भी काम मुश्किल नहीं है, अतः तुरंत हार मान लेने के बजाय हमें पूरी शिद्दत और इच्छाशक्ति से उस काम को करने के लिए,स्वयं को उत्साहित करना चाहिए। इसी को स्व प्रेरणा कहा जाता है।

वाकई दोस्तों, यदि इरादा पक्का हो तो, दुनिया का कोई भी काम मुश्किल नहीं है,बस जरूरत है तो खुद को इसके लिए तैयार करने की। दूसरों की सफलता हमें प्रेरणा जरुर देती है, परंतु वैसी ही सफलता प्राप्त करने के लिए तो हमें खुद ही मेहनत करनी होगी। हमें स्वयं अपने अंदर वो जज्बा पैदा करना होता है, जिससे हम किसी कार्य को करने का साहस कर सकें।

स्व प्रेरणा का अर्थ केवल यही नहीं होता है,कि हम खुद को किसी कार्य को करने हेतु प्रेरित करे, बल्की यह भी होता है कि हम स्वयं को उस काम के लिए लगने वाली मेहनत और लगन के लिए भी तैयार करें, क्योंकि बिना मेहनत ,लगन और उत्साह के तो कोई भी काम सफल हो ही नहीं सकता है।

कई बार हम जीवन में किसी एक या अधिक व्यक्तियों से इतने ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं कि बस उनके जैसा ही बन जाना चाहते है। ये व्यक्ति हमारे आसपास ही हों सकते हैं, जिन्हें हम जानते हैं या फिर कोई फिल्म स्टार, खिलाड़ी, राजनेता, बिजनेसमैन, लेखक,गायक इत्यादि कोई भी हो सकते हैं। कभी-कभी तो हम उनसे इतना अधिक प्रेरित हों जातें हैं कि, हमें रात दिन बस उन्ही की तरह बनने के खयाल आते हैं,और हम स्वयं को भुलाकर बस अपने आप में उनकी ही छवी को महसूस करते हैं।हम उनकी तरह अपना बातचीत का तरीका,पहनावा और चेहरा मोहरा बना लेते हैं, और एक झूठी जिंदगी जीने लगते हैं। यहां तक कि खुद का असली व्यक्तित्व ही भूल जाते हैं।

किसी को भी अपना आदर्श मानना बिल्कुल भी ग़लत बात नहीं है। बल्कि यह तो एक अच्छी ही बात है, परंतु जिस प्रकार किसी भी चीज की अती नुकसान ही करती है, यहां भी हमें यही बात ध्यान में रखनी चाहिए कि, जिन्हें हम देवता समझकर पूज रहे हैं, आखिर वे भी इंसान ही है। और उन्होंने भी अपनी जिंदगी को, अपनी मेहनत और काबिलियत से ख़ुद ही संवारा है।

अतः किसी को आदर्श जरुर बनाइये, परंतु साथ ही उसके जीवन के सफर पर भी एक नजर जरूर डालिए।और स्वयं को भी उतनी ही मेहनत करने की प्रेरणा दिजिए।


ईश्वर ने इस संसार में किसी भी प्राणि पर अन्याय नहीं किया है।सभी को उसने किसी ना किसी कला या विशिष्ट गुण से अवश्य ही नवाजा हैं, जिसे हम कभी पहचान पाते हैं,और कभी नहीं। साथ ही वो यदि हमारे अंदर कोई कमी रखता है,तो कोई ना कोई विशेषता भी जरुर प्रदान करता है,जो हमें औरों से अलग और विशेष बनाती है।बस जरूरत है तो सिर्फ खुद के अंदर झांकने की, खुद को पहचानने की, खुद पर विश्वास रखने की और खुद को उपर उठाने की।


याद रखिए लोग हमें आगे बढ़ने के लिए सहारा अवश्य देते हैं, परंतु इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपनी तरफ़ से कोई भी कोशिश ना करें, हमें तो खुद को इस लायक बनाने की कोशिश करनी चाहिए कि ,किसी का सहारा लेने के बजाय हम खुद ही किसी को सहारा दे सके।अपना आदर्श स्वयं ही बन सकें।
        

सफलता किसे अच्छी नहीं लगती है, परंतु जीवन में उतार चढाव तो आते ही रहते हैं।आज यदि हम असफल है तो कल सफल भी होंगे इसी प्रकार से सफलता की सीढ़ी चढ़कर हमें, असफलता का मुंह भी देखना पड़ सकता है। अतः किसी भी परिस्थिति के लिए हमें सज्ज रहकर, निराश होने के बजाय, खुद को और मेहनत करके आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए।  दोस्तों हमेशा याद रखें-

“अंधेरों से मिलकर ही तो, उजालें होते हैं,
 छंट ही जाते हैं वो बादल, जो काले होते हैं,
 वक्त और हालात की जंग को, हौंसलों से जीत जाते हैं,
कुछ लोग अपनी क़िस्मत, खुद ही लिखने वाले होते हैं।”

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