हिंदी स्वर(Swar) कि परिभाषा और उनका वर्गीकरण

स्वर Swar
स्वर Swar

आज के इस लेख में हम ‘हिंदी स्वर की परिभाषा और उनका वर्गीकरण’ के बारे में चर्चा करने वाले हैं। स्वर हिंदी व्याकरण का सबसे महत्वपूर्ण विषय है, विशेष तौर पर उनके लिए जो लोग हिंदी भाषा  सीखना चाहते हैं या सीख रहे हैं।

क्योंकि जिन्हें स्वर की सही जानकारी नहीं होगी वह हिंदी के वर्णों का सही उच्चारण नहीं कर पाएंगे। तो चलिए फिर बिना देर किए इस लेख  को शुरू करते हैं और जानते हैं स्वर्ण किसे कहते हैं और स्वर के कितने भेद हैं |

स्वर किसे कहते हैं

हिंदी व्याकरण में वर्णों को दो अलग-अलग विभाजन में बांटा गया है, स्वर और व्यंजन। स्वर वर्ण को भारतीय भाषा में या आम बोलचाल की भाषा में ध्वनि वर्ण भी कहा जाता है। स्वर वर्णों का उच्चारण आपके वाचकों में ध्वनिमान होता है, जिससे आवाज की उत्पत्ति होती है।

सरल शब्दों में कहें तो स्वर वर्ण उन्हें कहते हैं, जो वर्णों के निर्माण में अकेले ही उच्चारण होते हैं। जब वायु का प्रवाह आपके उच्चारण नली से अनियंत्रित रूप से निकलती है, तो वह ध्वनि के रूप में प्रतिष्ठित होती है। स्वर वर्णों को विशेष ढंग से उच्चारित किया जाता है, इनमें कुछ स्थानिक और बहूध्वनियात्मक भेद होते हैं, जो आपके मुख और गले के स्थान के आधार पर निर्धारित होते हैं।

इसलिए, हिंदी में स्वर वर्णों को सही ढंग से उच्चारित करना महत्वपूर्ण होता है। इस प्रकार, हिंदी व्याकरण में स्वर वर्णों की उच्चारण और पहचान करने की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो आपके भाषा के संरक्षण में महत्वपूर्ण होती है।

स्वर की परिभाषा

ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र होता है, उसे स्वर कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो अन्य वर्ण या अक्षरों की मदद लिए बिना जिन वर्णों का उच्चारण किया जाता है या बोला जाता है, उन्हें स्वर्ग कहा जाता हैं इन वर्णो का उच्चारण करते समय किसी दूसरे वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती है।

स्वर की संख्या

हिंदी भाषा में स्वर वर्ण की कुल संख्या 11 (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः) होती है, जिनमें से पहले 10 वर्ण को स्वर वर्ण कहा जाता है और बाकी दो वर्णों को अनुस्वर और विसर्ग कहा जाता है।

स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

अनुस्वर और विसर्ग – अं, अः

10 वर्णों के अलावा बाकी दो वर्णों को कुछ लोग स्वर की श्रेणी में रखते हैं, तो कुछ इसे व्यंजन कहते हैं। परंतु सत्य तो यह है, कि इन दोनों अनुस्वर (अं) और विसर्ग (अः) को ना ही स्वर की श्रेणी में रखा जाता है और ना ही यह पूर्ण रूप से व्यंजन की श्रेणी में शामिल होता है दरअसल इन दोनों को केवल स्वर के साथ लिखा जाता है।

स्वर के कितने भेद हैं

हिंदी व्याकरण के अनुसार स्वर के कुल 3 भेद होते हैं जिनके बारे में हम यहां विस्तार से बात करेंगे। जैसे कि –

  • हस्व स्वर
  • दीर्घ स्वर
  • प्लुत स्वर

हस्व स्वर किसे कहते है

हास्य स्वर को छोटी मात्रा वाले स्वर के रूप में पहचाना जाता है। यह स्वर छोटी अक्षरों यानी लघु वर्णमाला के अंदर प्रवेश करते हैं। अन्य शब्दों में कहा जाए तो जिन वर्णों का उच्चारण करने में अधिक समय ना लगता हो, उन्हें हास्य स्वर कहते हैं यानी कि जिन स्वरों का उच्चारण जल्दी किया जाए हाथ से स्वर कहलाते हैं।

उदाहरण के लिए –

अ, इ, उ, ऋ

दीर्घ स्वर किसे कहते है

दीर्घ स्वर को बड़ी मात्रा वाले स्वर के रूप में पहचाना जाता है। यह स्वर बड़े अक्षरों यानी गुरु वर्णमाला के अंदर प्रवेश करते हैं। अन्य शब्दों में कहां जाए तो ऐसे वर्ड जिन का उच्चारण करने में हास्य स्वर से अधिक समय लगे उन्हें दीर्घ स्वर कहा जाता है।

उदाहरण के लिए –

आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

प्लुत स्वर किसे कहते है

प्लुत स्वर को दोहरी मात्रा वाले स्वर के रूप में भी पहचाना जाता है। इन स्वरों की मात्रा सामान्य स्वरों की तुलना में अधिक होता है अन्य शब्दों में कहे तो ऐसे वर्ण या स्वर जिन का उच्चारण करने में हास्य स्वर और दीर्घ स्वर की तुलना में अधिक समय लगता हो, उन्हें प्लुत स्वर कहा जाता है।

उदाहरण के लिए –

ओउम्

स्वर का वर्गीकरण कैसे होता है

हिंदी स्वरों को प्रायः विभिन्न आधार के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। जैसे कि –

होठों की आकृति के आधार पर

स्वरों को ओष्ठों या होठों की आकृति पर वर्गीकृत किया जाता है यानी वर्ण के उच्चारण के दौरान होठों की स्थिति के आधार पर इसे वर्गीकृत किया जाता है।

कुछ ऐसे स्वर है जिन्हें प्राया ओष्ठों या होठों की आकृति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है दूसरे शब्दों में कहें तो स्वर या वर्णों का उच्चारण करते समय होठों पर किसी प्रकार की आकृति बनती है जिसके आधार पर ही स्वर को वर्गीकृत किया गया है।

होठों की आकृति के आधार पर स्वर दो तरह के हैं –

  • वृत्ताकार स्वर
  • अवृत्ताकार स्वर

वृत्ताकार स्वर

जब किसी स्वर या वर्ण का उच्चारण करते समय होठों की आकृति वृत्ताकार की बने तो, उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं।

 जैसे – उ, ऊ, ओ, औ।

अवृत्ताकार स्वर

ऐसे स्वर या वर्ण जिनका उच्चारण करते समय होठों की आकृति वृत्ताकार नहीं बनती है, उन्हें अवृत्ताकार स्वर्ण कहा जाता है।

जैसे कि – अ, आ, इ, ई, ऋ, ए, ऐ

जीभ की क्रियाशीलता के आधार पर

इस वर्गीकरण में, स्वरों को मानव जीभ की स्थिति और उनकी क्रियाशीलता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

जीभ की क्रियाशीलता के आधार पर स्वरों के तीन प्रकार हैं

  • अग्र स्वर
  • मध्य स्वर
  • पश्च स्वर

अग्र स्वर

अग्रिश्वर उन्हें कहा जाता है, जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय मनुष्य के जीभ के आगे का भाग यानी अग्रभाग क्रियाशील हो।

जैसे कि – इ, ई, ए, ऐ, ऋ

मध्य स्वर

मध्य स्वर उन्हें कहा जाता है, जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय मनुष्य के जीभ का मध्य भाग क्रियाशील हो। ध्यान रहे मध्य स्वर या वर्णों का उच्चारण करते समय जीभ के बीच के हिस्से यानी मध्य भाग में कंपन होता है।

जैसे कि – अ

पश्च स्वर

ऐसे स्वर या वर्ण जिनका उच्चारण करते समय प्रायः मनुष्य के जीभ का पीछे का हिस्सा क्रियाशील हो उन्हें पश्च स्वर कहा जाता है।

जैसे कि – आ, उ, ऊ, ओ, औ

तालु की स्थिति अथवा मुखाकृति के आधार पर

इस वर्गीकरण में स्वरों को जीभ के ऊपरी भाग या मुख के संरक्षण के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

तालु की स्थिति अथवा मुखाकृति के आधार पर 4 स्वर होते हैं –

  • विवृत
  • संवृत
  • अर्ध- संवृत
  • अर्ध- विवृत

विवृत स्वर

जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय मुख्य द्वार पूरी तरह से खुलता हो तो उसे विवृत स्वर कहा जाता है।

जैसे – आ

संवृत स्वर

जब किसी का उच्चारण करते समय मुख्य द्वार पूरी तरह से ना खुले अर्थात मुख्य द्वार बंद रहे तो उसे संवृत स्वर कहा जाता है।

जैसे – इ, ई, उ, ऊ

अर्ध- संवृत स्वर

ऐसे वर्ण या स्वर जिन का उच्चारण करते समय मुख ना तो पूरी तरह से खुलें और ना ही पूरी तरह से बंद हो अर्थात उच्चारण के दौरान मुख आधा खुला हो तो उसे अर्ध- संवृत स्वर कहा जाता है।

जैसे – ए, ओ

अर्ध- विवृत स्वर

ऐसे वर्ण या स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुख थोड़ा कम खुले तो उन्हें अर्ध- विवृत स्वर कहा जाता है।

जैसे –

अ, ऐ, औ

उच्चारण अथवा अनुनासिकता के आधार पर

इसमें उच्चारण के दौरान नाक का सहारा लिया जाता है या नहीं इसके आधार पर वर्गीकृत किया गया है।

उच्चारण अथवा अनुनासिकता के आधार पर दो स्वर होते हैं

  • अनुनासिक स्वर
  • निरनुनासिक स्वर

अनुनासिक स्वर

 ऐसे स्वर या वर्ण जिन का उच्चारण करते समय हवा न केवल मुख से बाहर निकलती हो बल्कि नाक से भी निकलती हो, तो उन्हें अनुनासिक स्वर कहा जाता है।

जैसे – अं, आँ, इँ

निरनुनासिक स्वर

ऐसे स्वर या वर्ण जिन का उच्चारण करते समय मुख से हवा बाहर की ओर निकले तो उसे नुनासिक स्वर कहा जाता है।

जैसे – अ, आ, इ

निष्कर्ष

आज का यह लेख ‘हिंदी स्वर कि परिभाषा और उनका वर्गीकरण यहीं पर समाप्त होता है। आज के इस लेख में हमने आपको स्वर किसे कहते हैं, स्वर के कितने भेद हैं और उनका वर्गीकरण कैसे होता है के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी है।

उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी और आपको इस लेख के माध्यम से स्वर्ण से संबंधित सभी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे। लेकिन इसके बावजूद यदि इस लेख से संबंधित आप और अधिक जानकारी चाहते हैं या इससे संबंधित प्रश्न पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट के माध्यम से आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।

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FAQ

स्वर किसे कहते हैं?

ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र होता है, उसे स्वर्ण कहते हैं। इन वर्णो का उच्चारण करते समय किसी दूसरे वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती है।

स्वर के भेद कितने हैं?

स्वर के तीन भेद हैं हास्य स्वर दीर्घ स्वर और प्लुत स्वर।

स्वर की संख्या कितनी है?

स्वर की कुल संख्या 11 है जिनमें से पहले 10 वर्ण को स्वर्ग वन कहते हैं और बाकी दो वर्णों को अनुस्वर और विसर्ग कहा जाता है।

प्लुत स्वर का उदाहरण क्या है?

प्लुत स्वर का उदाहरण है – ओउम्।

ऋ कौन सा स्वर है?

ऋ अर्ध स्वर के अंतर्गत आता है।