Ras In Hindi | रस की परिभाषा, प्रकार, अंग विशेषताएँ और स्थायी भाव

Ras In Hindi
Ras In Hindi

इस लेख में आज हम बात करने वाले हैं, कि रस (Ras In Hindi) की परिभाषा क्या है और रस के प्रकार कितने हैं। दरअसल काव्य, नाटक तथा हिंदी साहित्य में रस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इन्हीं की वजह से साहित्यकार या कवि मन की भावनाओं को लेखन के माध्यम से व्यक्त कर पाते हैं। यह एक ऐसा विषय है, जिस से संबंधित प्रश्न अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।

इसलिए इस विषय की जानकारी विद्यार्थियों को होनी अति आवश्यक है।  तो चलिए फिर बिना देर किए इस लेख को शुरू करते हैं और जानते हैं, रस क्या है रस के अंग कितने है और रस की विशेषताएं क्या है –

रस  किसे कहते हैं

रस हिन्दी साहित्य में भावनाओं और भावों को प्रकट करने का माध्यम होता है। सरल वाक्यों में कहें, तो रस का शाब्दिक मतलब है ‘आनंद’। जो कि मनुष्य के भावों के साथ संबंध रखती हैं।

इसलिए जब हम किसी रचना या कविता को सुनते है, तो उसमें वर्णित घटनाओं, पात्रों तथा यह शब्दों और वाक्यों के माध्यम से पाठक या श्रोता के भीतर विशेष भावनाओं का अहसास उत्पन्न होता है।

रसों की मदद से लेखक अपनी कथा या कविता को उन भावनाओं के साथ प्रस्तुत करते है,  जो वह बयां करना चाहता है।

इन रसों का इस्तेमाल विशेष तौर पर कहानियों, काव्य, गीत, नाटक, और अन्य गद्य-पद्य रचनाओं में होता है ताकि वाक्यों की भावना या भाव पाठकों तक सही ढंग से पहुँच सके।

रस भाषा कला का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और व्याकरण में भावना को सही तरीके से व्यक्त करने में मदद करता है।

रस  की परिभाषा क्या है

जब किसी भी कविता या नाटक को पढ़ने यह सुनने में आनंद महसूस हो, तो उन्हें रस कहा जाता है। रस को किसी भी कविता या नाटक की आत्मा माना जाता है। जिसे अंग्रेजी भाषा में Sentiments कहते हैं। 

इतिहास के अनुसार, भरत मुनि को रस की उत्पत्ति को सबसे पहले बताने या परिभाषित करने का श्रेय दिया जाता है। इसकी निष्पत्ति अनुभव, संचारी तथा विभाव भावों के योग या संयोग से होती है।

रस  के अंग कौन कौन से है

हिंदी व्याकरण के अनुसार रस के मुख्यतः चार  अंग होते हैं। जैसे की –

  • विभाव – रस उत्पन्न करने वाला कारण।
  • अनुभाव – रस के कारण उत्पन्न होने वाले भाव।
  • संचारी भाव – रस के साथ-साथ उत्पन्न होने वाले अन्य भाव।
  • स्थायीभाव – मन में स्थाई रूप से उत्पन्न होने वाले भाव होता है जो नियमित रूप से

विभाव

ऐसे भाव जो प्राय कविताओं या नाटकों में किसी विषय या वस्तु के बारे में जानकारी देने से या उनका वर्णन करने पर जो भाव उत्पन्न होता है,  उन्हें विभव कहा जाता है।

हिंदी में व्याकरण में विभाव को भी दो वर्गों में विभाजित किया गया है। जैसे कि –

  • आलंबन विभाव
  • उद्दीपन विभाव

आलंबन विभाव

जब किसी का भी सहारा लेकर या पाकर मन में किसी प्रकार की भावना जागृत होती है, तो उन्हें आलंबन विभाव कहा जाता है।

जैसे की – नायिका,नायक आदि।

इन्हें भी दो भागों में बांटा गया है –

आश्रयालंबन – जब किसी के मन में किसी प्रकार की भावना जागृत होती है या उत्पन्न होती है, तो उन्हें आश्यालंबन कहा जाता है।

विषयालंबन – जब किसी के कारण यानी किसी के वजह से मन में किसी भी प्रकार की भावना जागृत हो, तो उन्हें विषयलंबन कहा जाता है।

उद्दीपन विभाव

जब कोई ऐसी घटना या कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है या कभी कोई ऐसी वस्तु देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होता है, तो उन्हें उद्दीपन विभाग कहा जाता है।

जैसे – 

  • बादल का गर्जना
  • बिजली का कड़कना
  • कोयल की मधुर कोकिल आवाज

अनुभाव

ऐसी शारीरिक क्रियाएं जो मन की भावनाओं को प्रकट करती हैं, उन्हें अनुभव कहा, जाता है।

जैसे की –

डरना, चौकना, रोमटे खड़े होना, काँपना आदि।

हिंदी व्याकरण के अनुसार मुख्य आठ प्रकार के अनुभव होते हैं। जैसे की –

  • विवर्णता
  • स्तंभ
  • कंम
  • प्रलय
  • स्वेद
  • अश्रु
  • रोमांच
  • भंग

संचारि भाव

मन में उठने वाली ऐसी भावनाएं जो समय के साथ आती जाती रहती हैं, उन्हें संचारी भाव कहा जाता है। अर्थात् ऐसी भावनाएं जो कुछ समय के लिए उत्पन्न होती है और फिर कुछ समय बाद समाप्त ही हो जाती है।

व्याकरण के अनुसार कल 33 संचारी भावनाएं होती हैं, जो मन में अस्थाई रूप से कतई नहीं रहती।

जैसे की –

  1. स्मृति
  2. उत्सुकता
  3. हर्ष
  4. आवेग
  5. चिंता
  6. अलसी
  7. उग्रता
  8. श्रम
  9. शंका
  10. लज्जा
  11. स्वप्न
  12. बिबोध
  13. उग्रता
  14. व्याधि मरण
  15. मोह
  16. निद्रा
  17. आवेग
  18. दीनता
  19. निर्वेद
  20. उन्माद
  21. विषाद
  22. जड़ता
  23. असूया
  24. मति
  25. अवहितथा
  26. ग्लानी
  27. अपस्मर
  28. धृति
  29. चपलता
  30. मद
  31. श्राष
  32. स्वप्न
  33. अमर्ष

स्थायीभाव

ऐसे भाव जो मन में उत्पन्न होते है और सदा मन में ही  स्थापित रहते है, उन्हें  स्थायीभाव कहते है। स्थायीभाव का मतलब प्रधान भाव से होता है, जो की अस्थाई रूप से नाटक, कहानी, काव्य तथा गीत में शुरू से अंत तक होता है।

व्याकरण के अनुसार स्थाई भाव की संख्या नौ (9) होती है, जो की रस के आधार पर होता है, इनकी संख्या भी कुल नौ (9) होती है जिन्हें ‘नवरस’ के नाम से जाना जाता है।

हालांकि बाद में हिंदी आचार्यों के द्वारा दो भावों या रसों को इसके अंतर्गत मान्यता प्रदान की गयी है,  ‘वात्सल्य और भागवत’ के जुड़ने के बाद रसों तथा भावों की संख्या 9 से बदलकर 11 हो गई है।

रस के स्थायी भाव

रसस्थाई भाव
वत्सलवात्सल्य
निर्वेदशांत
क्रोधरौद्र
जुगत्सावीभत्स
अनुरागभक्ति रस
हासहास्य
विस्मयअद्भुत
भयभयानक
शोककरुण
उत्साहवीर

रस के प्रकार और उदाहरण

आधुनिक काव्यशास्त्र मे रस के मुख्ता 11 प्रकार माने जाते हैं। जिनमें से नौ प्रकार प्राचीन काव्यशास्त्र में भी माने जाते थे प्राचीन काव्यशास्त्र के बाद जब आधुनिक काव्यशास्त्र आया तब इनमें दो रस के प्रकार जोड़े गए  जिन्हें वत्सल रस भक्ति रस और अद्भुत रस कहा जाता है

जैसे कि –

  • श्रृंगार रस
  • वीर रस
  • करुण रस
  • हास्य रस
  • रौद्र रस
  • भयानक रस
  • वीभत्स रस
  • शांत रस
  • अद्भुत रस
  • भक्ति रस
  • वत्सल रस
Ras Ke Prakar

श्रृंगार रस (Sringar Ras In Hindi)

श्रृंगार रस प्रेम, कामुकता और सौंदर्य से संबंधित रस है  इस रस में प्रेमी प्रेमिकाओं के बीच के प्रेम का वर्णन किया जाता है। श्रृंगार रस  के स्थाई भाव को ‘रति’ कहा जाता है। इतना ही नहीं श्रृंगार रस को रसपति और रसराज के नाम से भी जाना जाता है।

जैसे की –

  • वह मनोहर सुंदरी, जैसे कमल का फूल, उसके होंठ की लाली, जैसे गुलाब का फूल।

तेरे कैसे घुंघराले, आंखें बड़ी-बड़ी, चेहरा चांद सा, मुस्कान हंसती हुई है।

यह मुख्ता दो प्रकार के होते हैं – 

  • संयोग श्रृंगार
  • वियोग श्रृंगार

संयोग श्रृंगार

ऐसी स्थिति ऐसी अवस्था जब प्रेमी प्रेमिका का संयोग  होता है अर्थात प्रेमी प्रेमिका या पति पत्नी के मिलन के समय उत्पन्न हुए  भाव का वर्णन होता है उन्हें संयोग श्रृंगार कहा जाता है

वियोग श्रृंगार

ऐसी स्थिति जहां प्रेमी प्रेमिकाओं का वियोग होता है अर्थात ऐसी स्थिति जब प्रेमी जोड़े एक दूसरे से मिलना चाहते हो और यह भावना इतनी तीव्र हो की उसके लिए फिर सब कुछ बर्बाद कर दे तो ऐसी अवस्था को वियोग श्रृंगार कहा जाता है।

वीर रस (Veer Ras In Hindi)

वीर रस सदैव वीरता, साहस और शौर्य से संबंधित रस है। इस रस में वीरों के युद्ध, पराक्रम और शौर्य का वर्णन किया जाता है। वीर रस  के स्थाई भाव को ‘ उत्साह’ कहा जाता है।

जैसे की –

  • घनघोर युद्ध में वीर योद्धा लड़ रहे थे, उनके हाथों में तलवारे और उनके चेहरे पर क्रोध था।
  • 14वीं शताब्दी में महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना से मुट्ठी भर सैनिकों के साथ लड़ाई लड़ी।

वीर रस के भी मुख्ता चार प्रकार होते हैं। जैसे कि –

  • युद्ध वीर
  • धर्मवीर
  • दानवीर
  • दया वीर

करुण रस (Karun Ras In Hindi)

करुण रस दुख, शोक और करुणा से संबंधित रस है। इस रस में किसी दुखद घटना का वर्णन किया जाता है। जिससे पाठक या सुनने वालों को करुणा का अनुभव होता है।  करुण रस  के स्थाई भाव को ‘शोक कहा जाता है।

जैसे की –

  • उसने अपने प्यार को खो दिया और वह जीवन भर दुखी रही।
  • उनके मृत्यु का समाचार सुनकर उनकी मां रोने लगी उनके आंसू थम न सके और वह निढाल हो गई।

हास्य रस (Hasya Ras In Hindi)

हास्य रस हँसी, विनोद और व्यंग्य से संबंधित रस है। इस रस में ऐसी घटनाओं तथा स्थितियों का वर्णन किया जाता है,  जिसे पाठक यह सुनने वालों को हँसी आती है।

सरल शब्दों में कहें तो कुछ अंतरंगी या मजाकिया वस्तुओं या वेशभूषाओं को देखकर तथा उनके बारे में पढ़कर मन में जो भावना उत्पन्न होती है, उन्हें हास्य रस कहा जाता है। हास्य रस के स्थाई भाव को हँसी कहा जाता है। 

जैसे की –

  • वह इतना भोला था,  कि उसे समझ नहीं आया कि उसका मजाक बनाया जा रहा है।
  • उसने ऐसी वेशभूषा पहनी कि सब लोग हँसने लगे।

रौद्र रस (Roudra Ras In Hindi)

रौद्र रस का क्रोध उग्रता और भाई से संबंधित रस है इस रस में ऐसी घटनाओं या स्थितियों का वर्णन किया जाता है जिसे पाठक या सुनने वालों को क्रोध या भाई का अनुभव होता है जल शब्दों में कहे तो साहित्य रचनाओं में मौजूद कुछ ऐसी स्थितियां जिन्हें पढ़कर या सुनकर मन में क्रोध की भाव जागृत हो तो उन्हें रौद्र रस कहते हैं।

रौद्र रस के स्थाई भाव को क्रोध कहा जाता है जैसे की वह इतना क्रोधित था कि उसके चेहरा लाल हो गया था उसने इतना भयानक दृश्य देखा कि उसे डर लग गया

भयानक रस (Bhayanak Ras In Hindi)

भयानक रस आतंक, भय और  त्रास से संबंधित रस है। इस रस में ऐसी घटनाओं या दृश्य का वर्णन किया जाता है, जिसे पाठक या सुनने वालों को भय, आतंक तथा त्रास का अनुभव होता है।

सरल शब्दों में यदि कहा जाए, तो भयानक रस ऐसी स्थितियां या दृश्य को कहते हैं, जिन्हें देखकर यह सुनकर मन में भय यानी डर की भावना उत्पन्न हो।  भयानक रस के स्थाई भाव को ‘भय’ कहते हैं।

जैसे की –

  • जोरदार बिजली की आवाज से लोग भय से कांप उठे।
  • उत्तराखंड में आए भूस्खलन के वजह से लोग काफी डर गए।

वीभत्स रस (Vibhatsh Ras In Hindi)

वीभत्स रस घृणात्मक वास्तु, घटनाओं तथा घृणित दृश्यों से संबंधित रस है। इस रस में ऐसी घटनाओं या विचारों का उल्लेख किया जाता है जिसे पढ़कर या सुनकर मन में घृणा और नफरत के भाव उत्पन्न हो। विभाग रस के स्थाई भाव को घृणा कहते हैं।

जैसे की –

  • उसकी लाश सड़क पर पड़ी थी, उसका चेहरा नीला पड़ चुका था।
  • उसने राज को इतना पीटा, कि उसका सर दो हिस्सों में बट गया और उसके सर से खून बहने लगा।

शांत रस (Shant Ras In Hindi)

शांत रस निर्वाण शांति और विरक्ति से संबंधित रस है। इसमें सुनने वाले या पढ़ने वाले के मन में निर्वेद या शांति का भाव उत्पन्न होता है। शांत रस के स्थाई भाव को निर्वेद कहा जाता है।

जैसे की –

  • वह शांत बैठकर ध्यान में लीन था, उसकी आंखें बंद थी और उसकी मां शांत था।
  • वह मठ का सबसे होनहार बालक था, हर वक्त शांत और ध्यान में लीन रहता था।

अद्भुत रस (Adbhoot Ras In Hindi)

अद्भुत रस चमत्कार आश्चर्य और विश्व में से संबंधित रस है। इस रस में कुछ आश्चर्यजनक कर देने वाली घटना या उल्लेखों को सुनकर या पढ़कर मन में जो भाव उत्पन्न होता है उन्हें अदभुत रस कहा जाता है।

जैसे की –

  • उसने एक अद्भुत सपना देखा, जिसमें उसे एक देवता दिखाई दिया, देवते ने उसे बताया कि उसे एक महान कार्य करना है।
  • जानवी ने अजीबो गरीब सपना देखा, जिसमें वह एक अलग ही दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी, जहां एलियंस रहा करते थे।

भक्ति रस (Bhakti Ras In Hindi)

भक्ति रस के अंतर्गत साहित्य रचनाओं या काव्य रचनाओं में पढ़ने वाले या सुनने वालों को ईश्वर के प्रति भक्ति और विश्वास का भाव उत्पन्न हो सकता है, तो उन्हें भक्ति रस कहते हैं।

जैसे की –

  • सीता रोजाना मंदिर जाती और घंटों तक भगवान के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना में लीन रहती है।

वत्सल रस (Vatshal Ras In Hindi)

वत्सल रस माता-पिता, भाई-बहन या किसी भी अन्य प्रियजन के प्रति प्रेम और स्नेह से संबंधित रस है। इस रस में किसी प्रियजन के साथ के सुखद अनुभवों का वर्णन किया जाता है।

जैसे कि –

  • वह अपनी माँ के गोद में बैठा था और उन्हें प्यार कर रहा था।
  • वह अपने भाई के साथ खेल रहा था और वह दोनों बहुत खुश थे।

रस  की विशेषता क्या है

रस की कई विशेषताएं हैं जिनके बारे में हम यहां विस्तार पूर्वक बात करने वाले हैं।

जैसे की –

  • रस का संबंध मनुष्य के भावों से होता है। रस के नौ प्रकार होते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक मूलभूत भाव से संबंधित है। उदाहरण के लिए, शृंगार रस प्रेम से संबंधित है, वीर रस वीरता से संबंधित है, और करुण रस करुणा से संबंधित है।
  • रस एक आंतरिक आनंद है। रस का अनुभव करने के लिए कोई बाहरी वस्तु या घटना आवश्यक नहीं है। रस का अनुभव मनुष्य के भीतर होता है। उदाहरण के लिए, हम किसी कविता या कहानी को पढ़कर या सुनकर रस का अनुभव कर सकते हैं, भले ही वह कविता या कहानी किसी वास्तविक घटना पर आधारित न हो।
  • रस एक अखंड अनुभव है। रस का अनुभव एक ही समय में होता है और रस के चार अंगों का अनुभव एक साथ होता है। उदाहरण के लिए, जब हम किसी प्रेम कविता को पढ़ते हैं, तो हम एक ही समय में प्रेम के भाव, प्रेम के कारण उत्पन्न होने वाले भाव, और प्रेम के साथ-साथ उत्पन्न होने वाले अन्य भावों का अनुभव करते हैं।
  • रस एक स्थिर अनुभव है। रस का अनुभव एक बार होने पर लंबे समय तक बना रहता है। उदाहरण के लिए, जब हम कोई अच्छी फिल्म देखते हैं, तो हमें उस फिल्म से जुड़ी यादें लंबे समय तक रहती हैं।

रस की विशेषताओं को समझने से रस की गहरी समझ प्राप्त होती है। जब हम किसी रचना को पढ़ते या सुनते हैं, तो हमें रस के चार अंगों का ध्यान रखना चाहिए। इससे हमें रस का अनुभव करने में मदद मिलेगी।

रस का महत्व क्या है

हिंदी भाषा में रस के कई प्रकार से महत्व होते है,  जिनके बारे में हम यहां विस्तार पूर्वक बात कर रहे हैं। 

जैसे की –

  • हिंदी साहित्य रचना के लिए रस एक महत्वपूर्ण आधार है, जिसके वजह से ही आज हिंदी साहित्य में एक से बढ़कर एक सफल साहित्यिक रचनाएं लिखी गई है।
  • साहित्यिक रचनाओं के साथ लेखक और पाठकों को जोड़ने में रस सबसे मुख्य भूमिका निभाता है।
  •  रचनाओं को लिखने या पढ़ने के दौरान लेखक और पाठकों के मन में एक खास प्रभाव उत्पन्न करने का कार्य रस करता है।

रस के महत्व और समझ को और भी ज्यादा बेहतर बनाने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना की आवश्यक होता है।

जैसे की –

  • हमने जैसा कि ऊपर बताया है, रस का संबंध मनुष्य के भावनाओं से होता है। इसलिए रस को अच्छी तरह से समझने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, कि हम अपने खुद के भावों को समझें।
  • रस के तीन अंग होते हैं और इन तीनोंअंगों  के बारे में विस्तार पूर्वक समझने से ही रस को समझना आसान हो जाता है।
  • रस को और अच्छी तरह से समझने के लिए उनके उदाहरण का अच्छी तरह से अध्ययन करना बहुत जरूरी होता है।
  • साहित्यिक रचनाओं को ध्यान पूर्वक पढे और उनमें दी गई भावों को समझने का प्रयास करें।

निष्कर्ष

आज का यह लेख रस के प्रकार और रस की परिभाषा यहीं पर समाप्त होती है। आज के इस लेख में हमने जाना की, रस के अंग क्या है तथा रस के स्थाई भाव की परिभाषा और रस की विशेषताएं क्या है। 

आशा करते हैं, यहां दी गई जानकारी के माध्यम से आपको रस क्या है अच्छी तरह से समझ आ गई होगी। लेकिन यदि इसके बावजूद आपके मन में कोई प्रश्न है, तो आप कमेंट के माध्यम से अपने प्रश्न यहां पूछ सकते हैं परंतु यदि यह लेख आपको उपयोगी लगा हो, तो उसे शेयर करना बिल्कुल भी ना भूले।

FAQ

रस क्या होता है?

जब किसी भी कविता या नाटक को पढ़ने यह सुनने में आनंद महसूस हो उन्हें रास कहा जाता है।

रस के कितने भेद हैं?

रस के 11 भेद होते हैं श्रृंगार रस, वीर रस, करुण रस, हास्य रस, रौद्र रस, भयानक रस, वीभत्स रस, शांत रस, अद्भुत रस, भक्ति रस, वत्सल रस।

श्रृंगार रस का स्थाई भाव क्या है?

श्रृंगार रस का स्थाई भाव रति है।

रस के कितने अंग होते हैं?

रस के मुख्यतः चार अंग होते हैं, स्थाई भाव, अनुभाव, विभाव, संचारी भाव।

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